Friday, July 31, 2009

अब ‘Wife Swapping’ पर रिएलिटी शो के लिए तैयार होइए

स्टार प्लस पर प्रसारित ‘सच का सामना’ को लेकर इन दिनों बहस छिड़ी हुई है। रिएलिटी शो को अश्लील और भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताकर एक वर्ग इसकी मुखालफत कर रहा है, तो दूसरे वर्ग का तर्क है कि आधुनिक समाज अब इस तरह के कार्यक्रमों के लिए तैयार हो चुका है, और शो में हिस्सा लेने वाले लोग जबरदस्ती नहीं बुलाए जाते।

‘सच का सामना’ के पक्ष-विपक्ष में अपने अपने तर्क हैं, और एक लिहाज से दोनों किस्म के तर्क ‘आधा सच’ तो कह ही रहे हैं। लेकिन, सच का सामना के बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है। अब,जबकि सच का सामना को कोर्ट की हरी झंडी मिल चुकी है, और शो निर्विवाद रुप से जारी है तो मेरा मन एक भविष्यवाणी करने को हो रहा है। वो ये कि अब जल्दी ही भारतीय टेलीविजन पर एक रिएलिटी शो दिखेगा-जिसमें पत्नियों की अदला बदली होगी। यानी वाइफ़ स्वैपिंग।

दरअसल, इस भविष्यवाणी के पीछे अपना एक तर्क है। सबसे पहला, नकल का सफल फंडा। भारतीय टेलीविजन पर प्रसारित ज्यादातर रिएलिटी शो नकल आधारित रहे हैं। अंताक्षरी को छोड़ दें, जो बिलकुल देशी आइटम है, बाकी ज्यादातर रिएलिटी शो का कांसेप्ट चुराया हुआ /खरीदा हुआ/ प्रेरित हुआ है।

कौन बनेगा करोडपति से लेकर, क्या आप पांचवी पास हैं, इंडियन आइडल, बिग बॉस स्पिलट्सवाला, खतरों के खिलाड़ी, इस जंगल से मुझे बचाओ, इंडियाज गॉट टेलेंट और सच का सामना तक सभी का कांसेप्ट विदेशी रिएलिटी शो से लिया गया है। जस का तस। ये सभी रिएलिटी शो हिट रहे हैं। एक हद तक मनोरंजन चैनलों के लिए टीआरपी की संजीवनी बूटी लेकर आते रहे हैं। इनकी खासियत,लोकप्रियता और विवाद सब टीआरपी खेंचू रहे हैं।

अब मुद्दे की बात। वाइफ स्वैपिंग पर रिएलिटी शो नया नहीं है। ब्रिटेन में 2003 और अमेरिका में 2004 से इसका प्रसारण चल रहा है। ब्रिटेन में चैनल-4 और अमेरिका में एबीसी नेटवर्क पर ‘वाइफ स्वैप’ दिखाया जाता रहा है। शो के फॉर्मेट के मुताबिक सामाजिक-आर्थिक स्तर में दो अलग ध्रुव पर रहने वाले दो परिवारों के बीच पत्नी/मां की अदला-बदली होती है। ये शो दो हफ्ते का है। पहले हफ्ते बदली गई पत्ती पहली पत्नी के नियमों और उसके अंदाज में घर चलाती है, और दूसरे हफ्ते अपने नियम-कायदे गढ़ती है। हालांकि, इन रिएलिटी शो का इतिहास बताता है कि इस दौरान गाली-गलौज, बच्चों से बदसलूकी और पत्नी पर हाथ उठाने के मामले सामने आए। इसी शो का एक सेलेब्रिटी संस्करण भी है,जिसमें हमारी परीचित जेड गुडी भी एक बार शामिल हुई थीं।

लेकिन,अब वो बात जो संभवत: आपके पेट में खलबली मचा रही हो। जी नहीं, इस शो में पत्नियां ‘बेड शेयर’ नहीं करतीं। लेकिन,पर-पुरुष के साथ उनका भावनात्मक संबंध नहीं बनता-ये कहना भी गलत होगा। इसी साल वाइफ स्वैप में शामिल हो चुकी एक महिला जैमी ने अपने पति को चाकू मार दिया था। वजह एक दूसरा मर्द ही था। वो कौन था-ये साफ नहीं है। जैमी का पति घायल हुआ,मरा नहीं। जमानत मिली 75,000 डॉलर में।

बहरहाल, शो में टीआरपी बटोरने की खूब गुंजाइश है। इसलिए भारतीय मनोरंजन चैनलों की भी इस पर जल्द नज़र जाएगी ही। अब, इसमें आप खोजिए नैतिक-अनैतिक बातें-टेलीविजन चैनलों को टीआरपी चाहिए,जो इसमें खूब मिलेगी।

वैसे,अपने दिमाग में एक आइडिया चैनल वालों के लिए आ रहा है। राखी स्वयंवर रचा चुकी हैं(मतल दो को रचा लेंगी) और अब आने वाले दिनों में उन्हें फिर एक रिएलिटी शो की तलाश होगी। राखी टीआरपी सावंत को अभी से एप्रोच किया जा सकता है !

Thursday, July 30, 2009

जाको राखे 'नेटीजन', रोक सके न कोय

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी को सोशल मीडिया के कुछ दिलचस्प और चर्चित किस्सों का पता होता, तो शायद वो ऐसी गलती कभी नहीं करते। उन्होंने खुद पर गढ़े गए एसएमएस-ईमेल और ब्लॉग पोस्ट पर पाबंदी लगाने के लिए “दोषियों” को 14 साल की जेल का ऐलान कर डाला। अपनी नीतियों पर जनता की आलोचना से भन्नाए राष्ट्रपति के इस फरमान का खुलासा किया गृहमंत्री रहमान मलिक ने। उनके मुताबिक, फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वो लतीफे वाले ई-मेल और एसएमएस पर नजर रखे और दोषियों को साइबर क्राइम एक्ट के तहत जेल में ठूंस दे। लेकिन, जरदारी और मलिक का यह दांव उल्टा पड़ गया है। जरदारी पर गढ़े लतीफे एसएमएस, ई-मेल, ब्लॉग और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर खूब दिख रहे हैं। राष्ट्रपति साहब अब इस बात पर खफ़ा हैं कि इतनी जबरदस्त चेतावनी के बावजूद भी ऐसा क्यों हुआ। दरअसल,ऐसा होना ही था। सोशल मीडिया के किसी भी माध्यम में कंटेंट के आने के बाद उस पर जबरदस्ती पाबंदी लगभग नामुमकिन है। ऐसे उदाहरणों की लंबी फेहरिस्त है।

अमेरिका में चंद साल पहले पायलट गैब्रिली एडलमैन और फोटोग्राफर केनेथ एडलमैन ने अपनी साइट कैलिफोर्नियाकोस्टलाइनडॉटओआरजी के लिए पूरे समुद्र तट के फोटो खींचे तो उनमें एक तस्वीर मशहूर गायिका बारबरा स्ट्रीसैंड़ की भी थी। बारबरा ने जिद की कि उनके घर का फोटो साइट से हटाया जाए। इस बात की भनक लगते ही नेट प्रेमियों के बीच इस फोटो का धुआंधार आदान-प्रदान हुआ। तमाम साइटों और ब्लॉग पर फोटो चस्पां हो गया। नतीजा,बारबरा का यह घर आज भी नेट पर देखा जा सकता है। इसी तरह,पाठकों द्वारा किसी ब्लॉग,साइट या ट्विटर की पोस्ट की रेटिंग करने वाली वेबसाइट डिगडॉटकॉम पर 2007 में एचडी-डीवीडी को तोड़ने वाला एक कोड़ जबरदस्त हिट हुआ। सिर्फ एक दिन के भीतर 3172 ब्लॉग पर इस कोड़ का ज़िक्र किया जा चुका था। फिल्म इंडस्ट्री ने डिग पर कानूनी कार्रवाई का ऐलान किया तो डिग के संस्थापक कैविन रोज़ ने फौरन मूल कोड़ हटा लिया। लेकिन,तब तक लाखों लोग इस कोड़ को न केवल जान चुके थे,बल्कि कोड़ तोड़ने का वीडियो ‘यूट्यूब’ पर भी आ चुका था। डिगडॉटकॉम सिर्फ साइट-ब्लॉग का एग्रीगेटर है,लिहाजा इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी। लेकिन,कार्रवाई की बात ने कोड़ के प्रचार में अहम भूमिका निभायी। ज़रदारी भी इसी तरह गलती कर गए हैं-कार्रवाई की धमकी देकर। नतीजा पाकिस्तान में यार-दोस्त आपस में तो एसएमएस-ईमेल भेज ही रहे हैं, सोशल मीडिया पर इन लतीफों की भरमार हो रही है। जानकारों की मानें तो इस माध्यम में ‘नेटीजन’ के माऊस क्लिक तक पहुंचे कंटेंट को भगवान भी उनसे नहीं छीन सकता। लेकिन, जरदारी ये बात कहां जानते थे ?

चीन बोला- नामीबिया कहां ?

इंटरनेट सेंसरशिप के मामले में चीन का कोई जवाब नहीं। ज़रा ज़रा सी बात पर चीन में वेबसाइट पर पाबंदी लगना आम हो चला है। हाल में, चीन ने सर्च इंजन में नामीबिया से जुड़े की-वर्ड ही ब्लॉक कर डाले। दरअसल,एक चीनी कंपनी के नामीबिया सरकार के साथ समझौते में हुई धांधली की खबर लीक होने के बाद चीन सरकार ने यह फैसला किया। इस फैसले के बाद बीस लाख की आबादी वाला यह दक्षिणी अफीका का मुल्क इंटरनेट से लापता हो गया। नामीबिया सर्च करने पर एरर मैसेज आने लगा। इससे पहले, जून में थ्यानमैन चौक नरसंहार की 20वीं बरसी पर चौकसी बरतते हुए सरकार ने ट्विटर, हॉटमेल और फ्लिकर जैसी कई साइटों पर पाबंदी लगा दी थी। दिलचस्प यह कि सरकार पाबंदी लगाती है,लेकिन यह खबर लीक जरुर होती है कि सरकार ने किन साइटों पर और क्यों रोक लगाई है। ऐसे में,क्या सरकार अपने इरादे में कामयाब हो पाएगी ?


आंकड़ों में :

बराक ओबामा से प्रियंका चोपड़ा तक कई हस्तियां इन दिनों माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर का इस्तेमाल कर रही हैं। एक तरह से ट्विटर नया स्टेटस सिंबल बन गई है। ट्विटर के चाहने वाले दुनिया भर में किस तेजी से बढ़ रहे हैं, इसका अंदाजा नील्सन कंपनी की रिसर्च के नतीजों से लगाया जा सकता है। इसके मुताबिक, साल 2006 में बनी इस कंपनी की साल 2008 में विकास दर 1382 फीसदी रही है। 2009 फरवरी में इसे सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म घोषित किया गया।


चलते-चलते :

जरदारी पर बने हज़ारों एसएमएस में से कुछ

1-“जरदारी और मुशर्ऱफ़ ”

हकीकत थी पर / ख्वाब निकला /दूर था पर पास निकला / मैं इस बात को क्या कहूं /ये ज़रदारी तो / मुशर्ऱफ़ का भी बाप निकला

2-“अपहरण”

आतंकवादियों ने जरदारी का अपहरण कर लिया। उन्होंने पाकिस्तान सरकार से बदले में 5 करोड़ डॉलर की मांग की है। सरकार ने लोगों से अपील की है कि वो अपने प्यारे राष्ट्रपति को छुड़ाने के लिए जो कुछ दे सकते हैं, दें।

मैंने पांच लीटर पेट्रोल दान दिया है।

(दैनिक भास्कर, दिल्ली में प्रकाशित स्थायी स्तंभ-ब्लॉग उ(वॉच)

Wednesday, July 22, 2009

अब ‘टीआरपी’ वाले मुद्दों पर मचाओ हंगामा !

दाल की कीमतें एक-दो महीनों में 20 रुपए किलो से ज्यादा बढ़ गई हैं। निजी स्कूल सरकारी आदेश के बावजूद फीस बढ़ाने में जुटे हैं। अंबानी भाइयों ने देश के गैस भंडार को अपनी जागीर समझ रखा है। महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं रोज अखबारों में सुर्खियां बन रही हैं। इस तरह के पचासों गंभीर मसले हैं,जिन पर बहस होनी चाहिए ताकि किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जा सके। इन मसलों पर राजनीतिक दलों में एक सहमति बननी चाहिए ताकि प्रभावी तरीके से कोई कानून बन सके-उपाय खोज सकें।

लेकिन,सहमति किस मसले पर बनती है? 'सच का सामना' पर। स्टार प्लस पर प्रसारित 'सच का सामना' भारतीय संस्कृति के खिलाफ है- यह कहते हुए समाजवादी पार्टी के सांसद कमाल अख्तर ने राज्यसभा में मामला उठाया तो बीजेपी के प्रकाश जावड़ेकर समेत कई पार्टियों के नेताओं का समर्थन मिल गया।

चलिए मान लिया कि ‘सच का सामना’ के सवाल भारतीय संस्कृति के खिलाफ हैं। लेकिन, इसमें शामिल होने वाले प्रतियोगियों को क्या खींच खींचकर हॉट सीट पर बैठाया जा रहा है? पैसा बोलता है भइया। लोगों को पैसा मिले तो बीच सड़क नंगे होने को तैयार हैं, तो यहां तो सिर्फ सच बोलना है।

लेकिन,सवाल ‘सच का सामना’ का नहीं है। सवाल है सांसदों के विरोध का। क्यों इन दिनों बालिका वधू से लेकर सच का सामना जैसे टेलीविजन कार्यक्रमों पर संसद में सवाल उठाए जा रहे हैं? क्या नेशनल ब्रॉडकॉस्टिंग एसोसिएशन मर गया है, जिसका काम ही इन कार्यक्रमों के खिलाफ सुनवाई करना है।

एक सवाल ये भी क्यों सांसदों को घटिया-बेहूदा और अश्लील विज्ञापन टेलीविजन पर नज़र नहीं आते। विज्ञापन तो उन्हें बड़े टॉयिंग लगते हैं :-)

कहीं,टेलीविजन कार्यक्रमों पर सवाल उठाने का एक सिरा खुद की टीआरपी बटोरना तो नहीं है। इन दिनों हर जगह ‘सच का सामना’ का जिक्र है तो सांसद महोदय ने इसी कार्यक्रम पर सवाल उठा डाला और सुर्खियां बटोर लीं। बालिका वधू के सिलसिले में भी यही कहा जा सकता है।

वैसे,एक वजह सांसदों का डर भी हो सकता है कि कहीं आने वाले दिनों में उन पर हॉट सीट पर बैठने का दबाव न बनने लगे। कहीं क्षेत्र की जनता कह दे- पहले हॉट सीट पर बैठकर आओ, फिर देंगे वोट। हो ये भी सकता था कि ‘सच का सामना’ में किसी भी पार्टी का छुटभैया नेता हॉट सीट पर बैठ जाए और सवालों के जवाब में भद्द पिटे आलाकमान की। मसलन-

क्या कभी आपसे आपकी पार्टी के मंत्री ने किसी काम के एवज में संबंधित पक्ष से मोटी रकम बटोरने को कहा है?

क्या आप मानते हैं कि आपने अपनी पिछली पार्टी को इसलिए छोड़ा कि वो भ्रष्टाचार के गर्त में जा चुकी है?

क्या आपने कभी अपने आला नेताओं के चरित्र पर शक किया है?

क्या आपने बड़े नेताओं के इशारे पर बूथ कैप्चरिंग या फर्जी वोटिंग करायी है?

यानी इन सवालों के जवाब देकर छुटभैया नेता तो दस-बीस लाख जीतकर निकल लेगा और जवाब देने पड़ेगे बड़े नेताओं को....

खैर, ‘सच का सामना’ बकवास है,इसमें कोई शक नहीं, लेकिन भारतीय संस्कृति के खिलाफ नारा उतना ही खोखला है,जितना ज्यादातर राजनेताओं का ईमान। क्योंकि,भारतीय संस्कृति के खिलाफ किस किस चीज को अब हम स्वीकृति मिलते देख रहे हैं-ये किसी से छिपा नहीं है। और महज 50 एपिसोड के एक रिएलिटी शो से ही भारतीय संस्कृति ध्वस्त हो ली तो फिर तो हो लिया काम।

Saturday, July 18, 2009

किसी को दो अवॉर्ड, अपने बाप का क्या जाता है?

अभी अभी एक न्यूज साइट पर ख़बर पढ़ी कि फिल्म अभिनेता शाहिद कपूर को राजीव गांधी अवॉर्ड से नवाजा गया है। बेस्ट एक्टर के लिए। अचानक जेहन में सवाल आ गया कि भाई शाहिद को क्यों? क्या बॉलीवुड में शाहिद के अलावा कोई इस लायक बचा नहीं था कि उसे ‘बेस्ट एक्टर’ माना जा सकता।

लेकिन,फिर दूसरे ही पल लगा कि अपने बाप का क्या जाता है, किसी को दो। 28 साल के शाहिद ने भले अभी तक सिर्फ इश्क विश्क,विवाह और जब वी मैट जैसी तीन सफल फिल्में दी हों,लेकिन अगर ज्यूरी उनके अभिनय पर फिदा है तो कोई क्या करे। अब,ये अलग बात है कि उनकी सबसे सुपर हिट फिल्म 'जब वी मैट' के सारे अवॉर्ड फिल्म की हीरोइन करीना कपूर की झोली में गए हैं।

वैसे,बात सिर्फ शाहिद कपूर की भी नहीं है। अवॉर्ड का सम्मान कैसे कम किया जाता है,ये राजीव गांधी अवॉर्ड में एक्टरों के नामों की फेहरिस्त को देखकर लगाया जा सकता है। 2005 में सुनील शेट्टी और करीना कपूर को ये अवॉर्ड दिया गया। अब सुनील भाई ने एक्टिंग में क्या तोप मारी है भला? और करीना कपूर ने अपनी बेहतरीन एक्टिंग 2005 के बाद ही दिखायी है,लेकिन उन्हें 2005 में इस अवॉर्ड से सम्मानित कर दिया गया। 2006 में जॉन अब्राहम और सुष्मिता सेन को यह अवॉर्ड दे दिया गया। बहुत खूब! 2007 में सलमान खान और शिल्पा शेट्टी को। शायद, इनके अनुभव के मद्देनजर दिया गया हो अवॉर्ड ! 2008 में सैफ अली खान और लारा दत्ता को। सैफ अली तो 2008 तक 'ओंकारा' और 'हम तुम' के जरिए अपने बेहतरीन अभिनय का जौहर दिखा चुके थे, लेकिन लारा दत्ता?

दिलचस्प ये कि इस लिस्ट में शाहरुख खान का नाम अपन को दिखायी नहीं दिया अभी तक। वैसे,शाहरुख को भी मैं बहुत उम्दां एक्टर नहीं मानता लेकिन लोकप्रियता में उनका कोई सानी नहीं है। इसके अलावा, 'चक दे' और 'स्वदेश' के बाद यह कहना भी गलत है कि शाहरुख को एक्टिंग नहीं आती।

वैसे, शाहिद कपूर से टक्कर लेने वालों में अभय देओल का नाम हो सकता था। अभय देओल की तमाम फिल्में लीक से हटकर हैं, और उनका अभियन कमाल का है। इसके अलावा एक नाम अभिषेक बच्चन का हो सकता था,जो 'गुरु' में बेहतरीन अभिनय दिखा चुके हैं, और 'धूम' और 'दोस्ताना' जैसी मसालेदार फिल्मों में भी खूब चले हैं। लेकिन,कांग्रेस सरकार में अभिषेक को सम्मान? न न...ये सोचना भी गलत है। आप क्या कहते हैं?

Wednesday, July 15, 2009

बकवास है 'सच का सामना'

स्टार प्लस पर रिएलिटी शो सच का सामना के पहले एपिसोड में हॉट सीट पर स्मिथा मटाई बैठीं तो लगा कि पहली बार में ही वो एक करोड़ रुपए नहीं तो कम से कम दस लाख रुपए जरुर जीत लेंगी।

उन्होंने तमाम सवालों के सही जवाब दिए। मसलन-

-क्या आपको अपनी बड़ी बहन की इस्तेमाल की गई किताबें मिलने पर गुस्सा आता था। (हां)
-क्या आप एक हफ्ते तक बिना नहाए रही हैं। (हां)
-क्या आपको लगता है कि आप 12वीं क्लास में इसलिए फेल हो गईं क्योंकि आप आलसी थीं।(हां)
-क्या आपने कभी अपने ग्राहकों को बासी खाना भेजा है।( नहीं)
-क्या आपके ससुर आपके पति से अच्छे दिखते थे। (हां)
-क्या आपको अपने भाई से इसलिए जलन थी कि क्योंकि आपको लगता था कि वो मां-बाप का दुलारा है।(हां)
-क्या आप अपने दूसरे बच्चे के जन्म के वक्त अपनी मां के साथ न होने पर उन्हें माफ कर सकती हैं।(नहीं)
-क्या आप मानती हैं कि आपके माता पिता आपके बच्चों से ज्यादा आपके भाई के बच्चों को प्यार करते हैं। (हां)
-क्या आपको लगता है कि आपकी सास आपकी मां से बेहतर मां थीं।(हां)
-क्या आप इस डर में जीती हैं कि आपके पति दोबारा शराबी न बन जाएं( हां)
-क्या आपने कभी अपने पति को जान से मारने के बारे में सोचा है।( हां)
-क्या आप सिर्फ अपने बच्चों की खातिर अपनी शादी बचाए हुए हैं।( नहीं)
-क्या आपने कभी अपने पति को धोखा देने के बारे में सोचा है।( हां)

इन 13 सवालों के जवाब में स्मिता ने सिर्फ सच बोला। बीच में अपना रुख साफ भी किया। लेकिन,जिस प्रश्न के जवाब में वो शो से हार गईं, वो था-

-क्या आप अपने पति के अलावा किसी दूसरे मर्द से शारीरिक संबंध बनाना चाहेंगी, अगर आपके पति को पता न चले तो...

स्मिता ने जवाब दिया-नहीं। यही जवाब उन्होंने शो से पहले पोलिग्राफिक टेस्ट के दौरान दिया था। लेकिन, जवाब गलत निकला। स्मिता अपने जीते पांच लाख रुपए फिर हार गईं।

लेकिन, इस शो ने मेरे मन में दो सवाल जरुर उभार दिए। पहला ये कि इंसान की जिंदगी में एक लम्हे के कई सच होते हैं। ऐसे कई लम्हें होते हैं,जब वो पता नहीं क्या सोचा है। भावावेश में वो अपनी पत्नी,गर्लफ्रेंड को मारने के बारे में भी सोच सकता है,तो बॉस को गोली मारने की भी। अपने टीचर से ही मोहब्बत का अफसाना जुड़ता देखता है तो घर में चोरी की भी कल्पना करता है। लेकिन,क्या वो ऐसा करता है? दरअसल, जिंदगी के किस लम्हे में आपके दिमाग में क्या ख्याल आया हो-ये याद कर पाना भी कई बार मुश्किल है। शायद यही वजह है कि स्मिता उस सवाल के जवाब में हार गई,जिसका जवाब उन्हें 'नहीं' के रुप में पता था। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद वो पांच लाख के पड़ाव पर ही बाहर हो लेतीं।

इसके अलावा, इस शो के फॉर्मेट से जुड़ा एक सवाल यह है कि प्रतियोगी का पोलीग्राफिक टेस्ट क्या हॉट सीट पर बैठने से ऐन पहले होता है या एक-दो दिन पहले टेस्ट हो लेता है। अगर,टेस्ट ऐन पहले होता है,तो शायद प्रतियोगी के हौसले के कद्र करनी चाहिए। लेकिन,अगर टेस्ट दो-एक दिन पहले हो चुका होता है तो फिर शो का फॉर्मेट दर्शकों को उल्लू बनाने जैसा है।

फिलहाल,स्टार प्लस पर यह कार्यक्रम टीआरपी बटोरने में सफल हो सकता है क्योंकि इस तरह का कोई कार्यक्रम भारतीय टेलीविजन पर कभी नहीं आया। लेकिन,हॉट सीट पर सोच समझकर बैठे प्रतियोगी इन सवालों के झंझावत से हिलेंगे-इसमें संदेह है। क्योंकि,जिन सवालों का सच चौंकाने वाला होगा, वो 'फुके हुए बम' होंगे, और सच विस्फोटक हो सकते हैं-वो अपने आप में पूरा सच नहीं होंगे। पहले एपिसोड के बाद मेरा यही निष्कर्ष है। बाकी देखते हैं आगे होता है क्या।

रिएलिटी शो के नये युग में ले जाएगा ‘सच का सामना’ ?

क्या आपके पति या पत्नी को मालूम न चले तो आप उन्हें धोखा दे सकते हैं? क्या आपका पत्नी की बहन से कभी अफेयर रहा है? क्या आपकी मां आपके बच्चों से ज्यादा आपके भाई के बच्चों को प्यार करती हैं? क्या आपने शादी से पहले सेक्स किया है? और क्या आपके दिमाग में कभी अपने पति या पत्नी की हत्या का ख्याल आया है? हां और न की सीमाओं में बंधकर ऐसे तमाम सवालों के जवाब और इसके रोमांच से टेलीविजन दर्शक रुबरु होने को तैयार हैं-रिएलिटी शो ‘सच का सामना’ के जरिए। आज यानी 15 जुलाई से शुरु हो रहा अमेरिकी रिएलिटी शो ‘द मूमेंट ऑफ ट्रूथ’ का देशी संस्करण ‘सच का सामना’ भारतीय टेलीविजन चैनलों पर रिएलिटी शो के एक नए युग की शुरुआत कर सकता है।

रिएलिटी शो के अतीत पर नज़र डालें तो परंपरागत ‘अंताक्षरी’ से लेकर नाच गाने के ‘इंडियन आइडल’ जैसे तमाम कार्यक्रमों में दर्शकों को लुभाने के लिए गाने-बजाने का सहारा लिया गया। इस बीच, ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसा कार्यक्रम भारतीय सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन के कंधों पर सवार होकर पहली बार छोटे पर्दे के जरिए एक करोड़ रुपए जीताने का ख्वाब लेकर ड्राइंगरुम में दाखिल हुआ तो वो भी सफल साबित हुआ। हालांकि,इसकी सफलता में अमिताभ की आत्मीयता और संवाद अदायगी की भी बड़ी भूमिका थी। बदलते वक्त में बिग बॉस, रोड़िस और स्पिल्ट्जवाला जैसे फूहड़ और भौंडे रिएलिटी शो ने भी टेलीविजन पर सफलता की कहानी लिखी। इन कार्यक्रमों में अश्लीलता, द्विअर्थी संवाद और बेहूदा हरकतें सामान्य थीं। लेकिन, ‘सच का सामना’ इन सभी रिएलिटी शो में इस मायने में बिलकुल अलग है कि यहां प्रतियोगियों को जीत के लिए सिर्फ और सिर्फ सच बोलना है, और इसमें कोई दो राय नहीं कि सच कई बार खौफनाक होता है।

इस शो के फॉर्मेट को दिलचस्प कहा जा सकता है। इसमें प्रतियोगियों को हॉट सीट पर बैठने से पहले पॉलीग्राफिक टेस्ट (लाइ डिटेक्टर टेस्ट) से गुजरना पड़ता है। इस दौरान, प्रतियोगी से 50 सवाल पूछे जाते हैं। पॉलीग्राफिक टेस्ट के नतीजे बताए बगैर प्रतियोगियों को इन्हीं 50 सवालों में से 21 सवालों का सामना कार्यक्रम के दौरान करना होता है। लेकिन, अपने मित्र-परिजनों के सामने। ये आसान काम नहीं है। खासकर तब,जबकि सवाल निजता की सीमाएं लगातार लांघ रहे हों, और हर सच मित्रों-परिजनों को आहत कर सकता हो।
अमेरिका में इस रिएलिटी शो पर कई घर बर्बाद करने का आरोप है। हॉट सीट पर बैठकर लाखों का इनाम जीतते हुए प्रतियोगियों ने कहीं अपने घर तोड़ डाले तो कहीं दिल। इस शो से जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं। लॉरेन क्लेरी नाम की एक प्रतियोगी से सवाल पूछने उसका पूर्व ब्यॉयफ्रेंड भी पहुंचा था। उसने पूछा, अगर मैं तुम्हारे पास लौटना चाहूं तो क्या तुम अपने पति को छोड़ दोगी। कार्यक्रम के नियम के मुताबिक, अगर कोई मित्र-परिजन जवाब न सुनना चाहता हो तो एक बार सवाल बदलने की गुजारिश कर सकता है। लॉरेन की मित्र ने यही किया। सवाल बदला गया तो फिर पूर्व ब्यॉयफ्रेंड को ही मौका मिला। उसने पूछा, क्या मैं ही वो शख्स हूं,जिससे तुम्हें शादी करनी चाहिए थी। लॉरने ने जवाब दिया-हां। इस जवाब के साथ लॉरेन एक लाख डॉलर के आंकड़े पर पहुंच गई। उसके पति ने खेल जारी रखने को कहा क्योंकि उसे लगा कि इससे ज्यादा वो निराश नहीं कर सकती। अगला सवाल था- क्या आपने शादी के बाद किसी दूसरे शख्स से शारीरिक संबंध बनाए हैं। लॉरेन का जवाब था- हां। इस जवाब के बाद लॉरेन और उसके पति की राहें जुदा हो गईं। लॉरेन संबंधों को गंवा लाखों डालर जीत चुकी थी। लेकिन, किस्मत का खेल देखिए कि अगला सवाल था-क्या आप खुद को बेहतर इंसान मानती हैं। लॉरेन ने जवाब दिया-हां। लेकिन,जवाब गलत साबित हुआ। लॉरेन खाली हाथ घर लौटी। इसी तरह, कोलंबिया में एक बार इस शो को इसलिए रद्द भी करना पड़ा क्योंकि हॉट सीट पर बैठी महिला ने स्वीकार किया कि उसने अपने पति की हत्या के लिए सुपारी दी थी, लेकिन वो बच गया।

लेकिन, बात अमेरिका की नहीं भारत की है। मुमकिन है यहां सेक्स से संबंधित सवाल कम पूछे जाएं, लेकिन इनके बगैर यह खेल यहां भी पूरा नहीं होगा। फिर, निजता की सीमाएं लांघते सवाल तो यहां भी होंगे ही। सवाल ये कि क्या भारतीय समाज ड्राइंगरुम के भीतर इन सवालों और इनके जवाबों को सुनने के लिए अब तैयार हो चुका है? सच की असल तस्वीर हालात से दिखायी देती है,लेकिन यहां सिर्फ हां और न में बंधा होगा सच। ऐसे में, क्या भारत में यह शो महज रिएलिटी शो साबित होगा या विवादों की खाद लेकर घरों और दिलों को तोड़ते हुए सफलता की नयी दास्तां लिखेगा?

बात सिर्फ सच की भी नहीं है। बात झूठ की भी है। समाज को कड़ी दर कड़ी जोड़े रखने में झूठ भी गोंद की तरह इस्तेमाल होता है। लेकिन, इस रिएलिटी शो में रोज सच का विस्फोट होगा। ड्राइंगरुम में। बच्चों के बीच। हालांकि,पॉलीग्राफिक टेस्ट को अभी कानूनी मान्यता नहीं है, लेकिन इस शो की विश्वसनीयता को इसी आधार पर भुनाया जाएगा।

कई लोगों का मानना है कि भारतीय घरों के चाय के प्याले में ‘सच का सामना’ अभी तूफान नहीं ला सकता। वजह यह कि भारतीय मानस अभी टेलीविजन को गंभीरता से लेता ही नहीं। भारतीय समाज की विसंगतियां भी उतनी दुश्कर नहीं हुई, जितनी पश्चिमी समाज की। लिहाजा, हमारे सच अभी उतने विस्फोटक नहीं हुए। इसके अलावा अहम बात ये भी कि इस कार्यक्रम में शिरकत कौन करता है?

इसमें कोई दो राय नहीं कि दूसरों की निजता से जुड़े सवालों का जवाब सार्वजनिक होने पर एक ‘अलग मज़ा’ देते हैं। टीआरपी की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में इस तरह का कार्यक्रम चैनल को आगे ले जाने में मदद कर सकता है,लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की तरह ड्राइंगरुम में बैठा परिवार जब हर सवाल का जवाब बुदबुदाएगा,तब वो सोच के किस पार खड़ा होगा? आखिर, 21 नितांत निजी सवालों के पार रखे एक करोड़ के इनाम का इनाम खुद को ‘नंगा’ करने सरीखा नहीं होगा। फिर, इस रिएलिटी शो के जरिए एक सवाल फिर उभार ले सकता है कि क्या ये टेलीविजन चैनलों का दिवालियापन नहीं है कि हम नकल कर एक ताले की चाबी को दूसरे में फिट कर देखना चाहते हैं। फिलहाल,देखना यही है कि क्या भारतीय दर्शक ‘सच का सामना’ करने के लिए तैयार हैं? अगर ऐसा हुआ तो भारतीय रिएलिटी शो के एक नए युग की शुरुआत होगी,जहां नाच गाने-शारीरिक श्रम-बौद्धिक चातुर्य से आगे जाकर निजता में सीधे सेंध लगाने की शुरुआत होगी।

(ये लेख दैनिक भास्कर के दिल्ली संस्करण में 15 जुलाई को प्रकाशित हुआ है)

Saturday, July 11, 2009

‘सविताभाभी’ के बहाने एक बड़ी बहस की गुंजाइश

इंटरनेट की दुनिया की पहली पोर्न कार्टून स्टार सविताभाभी का भारत में काम तमाम हुए करीब एक महीना बीत गया है, लेकिन वर्चुअल दुनिया में हुई इस ‘हत्या’ का बवाल थम नहीं रहा है। सीधे शब्दों में कहें तो भारतीय चरित्रों पर आधारित चर्चित और लोकप्रिय पोर्न कार्टून बेवसाइट सविताभाभी डॉट कॉम पर सरकार की पाबंदी को एक करीब सवा महीना गुजर गया है,लेकिन इसके प्रशंसक अभी हारे नहीं है। इंटरनेट पर ‘सेव सविता प्रोजेक्ट’ चलाया जा रहा है,जहां इस पोर्न कार्टून चरित्र के मुरीद अपने तर्कों के साथ हाजिर हैं और इसे पुनर्जीवित करने के लिए रणनीतियों पर बहस कर रहे हैं। दूसरी तरफ, इंटरनेट पर सेंसरशिप के खिलाफ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर कई बुद्धिजीवी भी सरकार के इस कदम को गलत करार देकर उसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सविताभाभी डॉट कॉम की लोकप्रियता ने कई रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे। पाबंदी से पहले साइट को प्रतिदिन देखने वालों की तादाद 200,000 से ज्यादा थी। वेबसाइट्स के ट्रैफिक नापने वाली प्रमुख कंपनी एलेक्सा पर सविताभाभी डॉट कॉम की रैकिंग टॉप 100 में थी। साल 2008 के मार्च में लॉन्च हुई इस साइट के तीस हजार से ज्यादा सदस्य हैं,जो पाबंदी से पहले तेजी से बढ़ रहे थे। लेकिन,इसमें भी कोई शक नहीं है कि अपनी तरह की इस अनूठी वेबसाइट की लोकप्रियता के साथ इसका विरोध भी जमकर हो रहा था। इस विरोध को निर्णायक शक्ल दी बेंगलुरु के एक मामले ने। पिछले साल अगस्त में बेंगलुरु के एक 11 वर्षीय छात्र ने इस पोर्न स्ट्रिप का एक एमएमएस बनाकर अपनी अध्यापिका को भेज दिया। इस मामले के सामने आने के बाद साफ हो गया कि बच्चों के बीच भी सविताभाभी की पैठ बन चुकी है,लिहाजा कई लोगों ने सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन सरकारी एजेंसी द कंट्रोलर ऑफ सर्टिफाइंग अथॉरिटीज (सीसीए) के पास शिकायत दर्ज करायी। लेकिन,फैसला लेते-लेते सरकार को करीब आठ महीने लग गए और इस साल 3 जून को डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन्स की तरफ से सभी इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को आदेश दिया गया कि वो इस साइट को ब्लॉक कर दें।

लेकिन, सवाल ये कि क्या सविताभाभी डॉट कॉम वास्तव में पाठकों की पहुंच में नहीं है ? यह सवाल न केवल अहम है,बल्कि पोर्न कार्टून स्ट्रिप की एक वेबसाइट पर पाबंदी के फैसले से कहीं आगे बहस की गुंजाइश पैदा करता है। दरअसल, सविताभाभी डॉट कॉम को भारत सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है,लेकिन अमेरिका में रजिस्टर्ड इस साइट को धड़ल्ले से अमेरिका-यूरोप समेत कई देशों में देखा जा सकता है। भारत में भी इस साइट तक ‘प्रॉक्सी सर्वर’ के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। गूगल सर्च इंजन के जरिए लोग आसानी से इस प्रॉक्सी सर्वर तक पहुंच सकते हैं। इस साइट की लोकप्रियता अभी भी बहुत कम नहीं हुई है क्योंकि एलेक्सा डॉट कॉम में इसकी रैंकिंग अभी भी शुरुआती 1200 साइटों में है। इतना ही नहीं,पाबंदी का खुलासा होने के बाद सविताभाभी डॉट कॉम से मिलते जुलते नामों से ही करीब 100 से ज्यादा साइट तैयार हो गईं, जिन पर लगभग वही पोर्न सामग्री है।

ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि इस स्थिति में क्या पाबंदी का कोई औचित्य रह गया ?वैसे,,बात सिर्फ सविताभाभी डॉट कॉम की नहीं है। इसके प्रशंसक और विरोधी दोनों के पास अपने अपने तर्क हैं। सवाल है इंटरनेट पर पोर्न साइटों का। अमेरिका की गुड पत्रिका के एक अध्ययन के मुताबिक नेट पर मौजूद कुल साइटों की 12 फीसदी पोर्नोग्राफिक हैं। इतना ही नहीं, 266 पोर्न साइट प्रतिदिन इंटरनेट पर अपना आशियाना सजाती हैं। इंटरनेट पर भारतीय पोर्न साइट्स की संख्या भी 2000 से ज्यादा है और लगातार नयी साइट जन्म ले रही हैं।

निसंदेह दुनिया भर में पोर्न कंटेंट की जबरदस्त मांग है और पोर्न साइट्स का अपना बड़ा बाज़ार है। एशियाई मुल्कों चीन,दक्षिण कोरिया और जापान में पोर्न साइट्स की कमाई 75 बिलियन डॉलर से अधिक है। अमेरिका एशियाई मुल्कों से इस मामले में कुछ पीछे हैं,जहां इंटरनेट पोर्नोग्राफी से करीब 15 बिलियन डॉलर की कमाई होती है। भारतीय संदर्भ में सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है,लेकिन जानकारों के मुताबिक भारतीय पोर्नोग्राफी बाजार तेजी से बढ़ रहा है। इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि इंटरनेट पर साल 2006 में 75 मिलियन बार ‘सेक्स’ शब्द खोजा गया और इन उत्सुक उपभोक्ताओं में दूसरे नंबर पर भारत के लोग थे।

इस हकीकत से मुंह मोड़ना संभव नहीं है कि इंटरनेट पोर्नोग्राफी के लाखों-करोड़ों दर्शक हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि कच्ची उम्र में बच्चों पर इन साइटों का बुरा असर पड़ सकता है। इस तरह के कई मामले लगातार सामने आए हैं। लेकिन,किसी खास साइट पर पाबंदी इसका कोई हल नहीं है। आखिर,सविताभाभी डॉट कॉम पर पाबंदी ने भी इसे पब्लिसिटी ही दी। ये साइट नेट पर उपलब्ध है,लिहाजा पाठकों के लिए इस तक पहुंचने में कोई खास परेशानी भी नहीं है। चिंताजनक बात यह है कि इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी समस्या का सिर्फ एक पहलू है। इंटरनेट पर तमाम वेबसाइट्स (भारतीय भी) मसाज वगैरह का खुलेआम विज्ञापन करते हुए वैश्यावृत्ति को बढ़ावा दे रही हैं। कई अश्लील साइटों पर ‘इंडियन ब्यूटी’ के गुणगान के बीच दावा किया जा रहा है ‘दिल्ली-चेन्नई और जालंधर की लड़कियों के प्रामाणिक वीडियो’उपलब्ध हैं। इन पर रोक की कोई ठोस कोशिश नहीं हो रही। दरअसल, इंटरनेट पर पोर्न कंटेंट और इससे जुड़ी समस्या की जड़े गहरी हैं,जिन्हें किसी साइट पर पाबंदी के जरिए नहीं सुलझाया जा सकता। जानकारों के मुताबिक,सभी देश इस समस्या से ग्रस्त हैं। इस बाबत एक वैश्विक समझौते की आवश्यकता है, लेकिन असली दिक्कत ये है कि पोर्न कंटेंट की परिभाषा अलग अलग देशों में अलग है।

इंटरनेट पर अश्लील कंटेंट को रोकने के लिए भारतीय सूचना तकनीक एक्ट-2000 को हाल में कुछ दुरुस्त किया गया। इसी कानून के तहत सरकारी एजेंसी द कंट्रोलर आफ सर्टिफाइंग अथारिटीज को वेबसाइटों को ब्लॉक करने का अधिकार दिया गया। लेकिन, इंटरनेट सेंसरशिप की मुखालफत करने वाले लोगों का मानना है कि सरकार धीरे धीरे मनमर्जी पर उतर सकती है।

दूसरी तरफ, सचाई यह भी है कि सभी पोर्न साइट्स को प्रतिबंधित करना फिलहाल दूर की कौड़ी है। फिर, सिर्फ कानून से ही पोर्न कंटेंट पर रोक लगी होती तो आज दुनिया भर में खरबों डॉलर की पोर्नोग्राफी इंडस्ट्री का अस्तित्व ही नहीं होता। हां,पोर्न साइट्स पर वैश्विक इंटरनेट नीति के बीच जरुरत जागरुकता की भी है। इसके अलावा,सरकार पोर्नोग्राफी के किसी खास पहलू पर ध्यान रखने की कोशिश कर सकती है। साइबर कानून के जानकार पवन दुग्गल कहते हैं-“अमेरिकी सरकार ने भी इंटरनेट पोर्नोग्राफी पर पाबंदी की तमाम कोशिशें की,लेकिन नाकाम रही। अब,वो सिर्फ चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर ध्यान केंद्रित किए हैं। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। भारत में भी ऐसा ही होना चाहिए।”

बहरहाल,सविताभाभी डॉट कॉम के बहाने ही सही इंटरनेट पर अश्लील कंटेंट से जुड़ी बहस फिर शुरु हुई है। इस बहस के जरिए अगर किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जा सके तो बड़ी कामयाबी मिल सकती है।

(दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 11 जुलाई को प्रकाशित आलेख)