Friday, July 7, 2017

सिक्किम को नजरअंदाज करना ठीक नहीं !

भारत को परेशान करने के लिए चीन अब 'सिक्किम कार्ड' खेल सकता है। चीन के सरकारी मीडिया ने गुरुवार का इसका जिक्र कर दिया। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा- "हमें सिक्किम की आजादी का समर्थन करना चाहिए। हमें इस मसले पर अपना स्टैंड बदलना चाहिए। हालांकि, 2003 में चीन ने सिक्किम पर भारत के कब्जे को मान लिया था, लेकिन वो अपने स्टैंड को फिर से बदल सकता है। सिक्किम में अभी भी ऐसे लोग हैं, जो उसके स्वतंत्र देश के इतिहास को याद करते हैं।" जाहिर है चीन सिक्किम में राख में छिपी चिंगारी को हवा देकर माहौल बिगाड़ना चाहता है। लेकिन सवाल चीन का नहीं भारत का है, क्योंकि भारत के लिए सिक्किम का सामरिक महत्व है, और हम भी ये भी नहीं भूल सकते कि भारत ने सिक्किम को कैसे हासिल किया। आजादी के वक्त तो सिक्किम ने भारत में विलय के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। उस वक्त तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सिक्किम को संरक्षित राज्य का दर्जा प्रदान किया। इसके बाद 1955 में एक राज्य परिषद की स्थापना की गई, जिसके आधीन चोग्याल को एक संवैधानिक सरकार बनाने की अनुमति दी गई अलबत्ता विदेश मामले, रक्षा, कूटनीति और संचार दिल्ली के हाथ में रहे। 1970 के शुरुआती सालों तक चोग्याल का शासन कायदे से चलता रहा लेकिन धीरे धीरे उनका कामकाज का तरीका लोगों को नापंसद आने लगा। चोग्याल की बढ़ती अलोकप्रियता के बीच 1973 में राजभवन के सामने दंगे हुए और सिक्किम ने भारत सरकार से संरक्षण के लिए औपचारिक गुजारिश की। इसके बाद भारत सरकार को समझ आने लगा कि चोग्याल का शासन बहुत लंबा चलेगा नहीं। लेकिन, सिक्किम को भारत में शामिल होने की असल पटकथा अप्रैल 1975 में लिखी गई, जब छह अप्रैल 1975 को इंदिरा गांधी ने दांव चला। चोग्याल के राजमहल को भारतीय सेना ने घेर लिया। पांच हजार से ज्यादा भारतीय सैनिकों को मुट्ठीभर गार्डों को काबू करने में आधा घंटा भी नहीं लगा। उस दिन दोपहर पौने एक बजे तक सिक्किम का आजाद देश का दर्जा खत्म हो गया। दिल्ली के नगरपालिका आयुक्त बीएस दास को 8 अप्रैल 1975 को सिक्किम सरकार की जिम्मेदारी लेने के लिए गंगटोक भेजा गया। राजमहल को अपने कब्जे में लेने के बाद भी सिक्किम का पूर्ण विलय आसान नहीं था। 1962 के युद्ध में जीत के बाद चीन की ताकत भारत देख चुका था, और चीन सिक्किम के भारत में विलय का विरोध कर रहा था। लेकिन इंदिरा गांधी ने चीन को तिब्बत पर हमले की याद दिलाकर उस विरोध को खारिज कर दिया। सच कहा जाए तो 1962 के युद्ध में हार के बाद ही भारत को सिक्किम की अहमियत समझ आई। सामरिक विशेषज्ञों ने महसूस किया कि चीन की चुंबी घाटी के पास भारत की सिर्फ़ 21 मील की गर्दन है, जिसे ‘सिलीगुड़ी नेक’ कहते हैं। चीन चाहे तो एक झटके में उस गर्दन को अलग कर उत्तरी भारत में घुस सकते है। चुंबी घाटी के साथ ही लगा है सिक्किम। वैसे, सिक्किम को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव चोग्याल के अमेरिकी लड़की होप कुक से शादी के बाद भी बदली। चोग्याल के साथ होप कुक भी प्रशासनिक कामों में दखलंदाजी करने लगी थी और चोग्याल को लगता था कि अगर वो सिक्किम को आजाद कराने की मांग करेंगे तो अमेरिका उसका समर्थन करेगा। उन दिनों भारत के अमेरिका से मधुर संबंध नहीं थे। और संबंधों की लय कितनी बिगड़ी हुई थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1971 के युद्ध में अमेरिका ने भारत के खिलाफ अपना सातवां बेड़ा तक भेज दिया था। चीन के साथ नेपाल भी सिक्कम के भारत में विलय के विरोध में था लेकिन सारे विरोध मिलकर कोई ऐसे हालात बना पाते कि विलय का खेल मुश्किल में पड़ जाता-उससे पहले ही चोग्याल ने 8 मई के समझौते पर अपने हस्ताक्षर कर दिए। रॉ ने इसमें अहम भूमिका निभाई। दो दिनों के भीतर पूरा सिक्किम राज्य भारत के नियंत्रण में था। सिक्किम को भारतीय गणराज्य मे सम्मिलित करने का सवाल जनमतसंग्रह के जरिए जनता के सामने रखा गया, जिसके पक्ष में सिक्किम के 97.5 फीसदी लोगों ने वोट किया यानी सिक्किम के लोग चाहते थे कि वो भारत के संग आएं। इसके बाद 16 मई 1975 में सिक्किम औपचारिक रूप से भारतीय गणराज्य का 22वां प्रदेश बना और सिक्किम में चोग्याल के शासन का अंत हुआ। सिक्किम ने भारत के नियंत्रण में आने के बाद खासा विकास भी किया, और विकास ही सिक्किम की सरकारों की प्राथमिकता में रहा। आलम ये कि साल 2007-2012 के दौरान सिक्किम की विकास दर 22 फीसदी के करीब रही थी, जबकि इसी अवधि में भारत की औसतन ग्रोथ 8 फीसदी रही। सिक्किम में पिछले 8 साल में गरीबी 20 फीसदी कम होकर 8 फीसदी पर आ गई है और राज्य के मुख्यमंत्री का दावा है कि एक-दो साल में ही सिक्किम गरीबी मुक्त हो जाएगा। इतना ही नहीं, दो साल पहले ही सिक्किम देश का ऐसा पहला राज्य बन गया था, जहां सभी घरों में शौचालय है। पिछले दो दशक से ज्यादा वक्त से पवन चामलिंग सिक्किम के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन अब उन्हें लगता है कि सिक्किम चीन और पश्चिम बंगाल के बीच पिस रहा है। एक दिन पहले ही उन्होंने बिगड़े हालात के बीच बयान दिया कि "सिक्किम के लोग चीन और बंगाल के बीच सैंडविच बनने के लिए भारत के साथ नहीं जुड़े थे" चामलिंग का अनुमान है कि पश्चिम बंगाल से सिक्किम तक पहुंचने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 31 को जिस तरह गोरखालैंड आंदोलन की वजह से बीते 30 साल में बंद किया गया, उससे कई बार सिक्किम की व्यवस्थाएं चौपट हुई। और इन 30 साल में सिक्किम को 60 हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ। अब तो सिक्किम दो तरफ से पीस रहा है। चीन सीधे सीमा पर खड़ा है तो गोरखालैंड आंदोलन जोर पकड़ रहा है। जाहिर है सिक्किम के लोग परेशान हैं, और उनकी परेशानी को हल करना भारत सरकार की जिम्मेदारी है। क्योंकि चीन ने जिस तरह सिक्किम कार्ड खेलने की धमकी दी है, और यदि वैसा ही किया गया तो कोई बड़ी बात नहीं कि परेशान सिक्किम में एक गुट अलग सिक्किम देश के लिए आंदोलन शुरु कर दे। चीन उसे हवा देगा ही और भारत सरकार की मुश्किलें तब और बढ़ेंगी। ऐसे में जरुरी है कि सिक्किम को किसी कीमत पर नजरअंदाज नहीं किया जाए।