Thursday, June 7, 2018

नृत्य का मनरेगा

तोंद को परे रख वरमाला के मंच पर कमरतोड़ डांस करने वाले अंकलजी ने जिस तरह राष्ट्र को नृत्यमोह में उलझाया है, उसके बाद उन्हें 'राष्ट्रीय महत्व की संपत्ति' का दर्जा मिल जाना चाहिए। अंकलजी ने मंच पर सुपरहिट डेमो देकर कई भ्रम तोड़े हैं। पहला, शादी में फूफाजी नामक प्राणी सिर्फ मुंह फुलाए बैठा रहता है। फूफा होने के बावजूद अंकलजी ने डिस्को से लेकर ब्रेक डांस तक कई शैलियों में जिस तरह डांस किया-उसने फूफाओं की पुरातन छवि को झटके में तोड़ दिया है। हालांकि, अंकलजी की इस हरकत से रुढ़िवादी फूफा खफा हैं। उन्हें भय है कि अगले सीजन से ही परिवार की शादियों में उनकी इज्जत का सेंसेक्स क्रैश हो जाएगा क्योंकि उनका रौब ही उनकी ताकत था। फूफा समुदाय अगर ऐसे शादी में खुलेआम मंच पर ब्रेक डांस करेगा तो फिर फूफाओं का लोड लेगा कौन? अंकलजी के 'डांस डेमो' ने ये भ्रम भी तोड़ दिया कि नयी पीढ़ी 21 साल पुराने गाने को सुनना-देखना नहीं चाहती। 21 बरस पहले 'आपके आ जाने से' गाते हुए लड़कियों को छेड़ने वाले पुरुषों को तसल्ली है कि जिस गाने को गाते हुए उन्होंने अपना बेशकीमती वक्त बर्बाद किया, वो गाना कम से कम फालतू नहीं था। अंकलजी ने ये भ्रम भी तोड़ दिया कि टीवी चैनल सिर्फ खूबसूरत लड़कियों को दिखाते रहना चाहते हैं, और गंजे-मोटे लोगों का स्कोप बिलकुल खत्म हो गया या सिर्फ गंजेपन और मोटापा कम करने वाली दवाइयों के मॉडल तक सीमित हो गया है। अंकलजी ने साबित किया है कि बंदे में हुनर हो तो कामयाबी और टीवी चैनल दोनों पीछे भागते हैं। आज देश के हजारों लड़के लड़कियां अंकलजी के अंदाज में आपके आ जाने से पर नृत्यरत हो रहा है। अपने वीडियो बनाकर यूट्यूब पर अपलोड कर रहा है। कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर होते हुए नृत्य के जरिए नाम कमाने वाले अंकलजी ने फिर साबित किया है कि पढ़ने-लिखने से ज्यादा कुछ नहीं होता। सिर पर चांद भले निकल आए, तोंद वृत्ताकार होते हुए बंदे को जमीनोनमुखी करने को भले लालयित रहे लेकिन पैशन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। वैसे भी बाबा रणछोड़दास ने कहा है कि काबिल बनो बच्चा, कामयाबी झक मारकर पीछे आएगी। बहरहाल, अब सरकार को चाहिए कि वो तत्काल प्रभाव से दूसरी मनरेगा यानी महा नृत्य रोजगार गारंटी स्कीम ल़ॉन्च कर दे। पायलट प्रोजेक्ट के लिए राजनेताओँ को चुना जा सकता है। इससे तीन फायदे होंगे। पहला, देश का नेता फिट रहेगा। दूसरा, संसद में हो हल्ला होने के हालात में इंटरटेनमेंट की गुंजाइश रहेगी। तीसरा, रैलियों में बड़े नेता के भाषण से पहले इन दिनों नृत्यांगनाएं बुलाई जाने लगी हैं तो उन पर बेवजह धन खर्च नहीं होगा। राजनेता खुद भांति भांति के नृत्य दिखाकर दर्शकों को बांधे रखेंगे। पायलट प्रोजेक्ट हिट होने पर बजट में नृत्य रोजगार गारंटी योजना के तहत आम जनता के लिए भी बजट आवंटित किया जा सकता है। हिन्दुस्तानी इस कदर आलसी और मुफ्तखोर हो गए हैं कि जब तक उन्हें किसी काम का पैसा नहीं मिलता-वो करना पसंद नहीं करते। ब्लड प्रेशर की दवाइयों में खर्च कर सकते हैं लेकिन सुबह की सैर नहीं कर सकते। ऐसे में नृत्य रोजगार गारंटी योजना से देश भी फिट होगा। और देश फिट हो न हो, नृत्य मनरेगा के तहत नृत्य करते हुए लोगों के वीडियो खूब यूट्यूब पर अपलोड होंगे। घर बैठे लोगों को एक काम मिल जाएगा। टीवी चैनलों के लिए भी कच्चा माल तैयार होगा। कुल मिलाकर योजना लॉन्च होगी तो विज्ञापन चलेंगे। योजना हिट होगी। फिर सारा देश नाचेगा। सारा देश नाच रहा है। आहा! कितना सुंदर दृश्य है !!!

Thursday, May 10, 2018

आया-आया तूफान

साल 1989 में अमिताभ बच्चन की एक फिल्म आई थी-तूफान। इस फिल्म में एक गाना था-आया आया तूफान, भागा भागा शैतान। फिल्म में अमिताभ 'तूफान' थे। बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की उपेक्षा की आँधी ने इस 'तूफान' को ऐसा उड़ाया कि निर्माता मनमोहन देसाई की जिंदगी में भूचाल आ गया। लेकिन इस दिनों असल तूफान का बड़ा हल्ला रहा। कई राज्यों में छोटा-बड़ा तूफान आया। पेड़ गिरे, ओले पड़े। गाने के हिसाब से चलें तो शैतानों का नामों निशान मिट जाना चाहिए लेकिन ऐसा होगा नहीं। शैतान अब बहुत शातिर हो गए हैं। पांच बरस गायब रहते हैं लेकिन ऐन चुनाव के वक्त रुप बदल बदलकर जनता के सामने आ खड़े होते हैं। मासूम-भोली सूरत लिए। इन चुनावी 'शैतानों' के पास भेष बदलने का अद्भुत हुनर होता है। इनके पैर दिखते सीधे हैं, लेकिन होते उल्टे हैं। चुनाव खत्म होते ही ये ऐसी रहस्यमयी गुफाओं में छिप जाते हैं, जहां सिर्फ ठेकेदार, रिश्वतखोर, बिल्डर वगैरह ही पहुंच पाते हैं। चुनाव के वक्त उल्टे पैर ये फिर समाज में आ पहुंचते हैं। नोट-शराब-वादे-दावे-सपने बांटते हैं। भिखारियों की तरह झोली फैलाते हैं-एक वोट दे दे बाबा। जनता मासूम। वोट दे देती है। शैतान छूमंतर हो जाते हैं। तूफान भी अब छूमंतर हो गया है। तूफान का इस बार बड़ा हल्ला रहा। बहुत डर लगा। टेलीविजन चैनलों ने हल्ले में गुल्ला मिलाकर तूफान को मारक बना दिया। कई बार ऐसा लगा कि तूफान घर में घुसकर मारेगा। असल तूफान अपनी जगह है लेकिन सच यह है कि लोगों के अपने अपने तूफान हैं। नौजवान लड़कों की जिंदगी में तूफान तब आता है, जब गर्लफ्रेंड झटके में कट लेती है और ब्रेकअप से पहले ऐसा कोई संकेत नहीं देती। वरना लड़के कम शातिर नहीं, वो विकेट गिरने से पहले नयी क्रीज पर बैटिंग की तैयारियां शुरु कर दें। युवा लड़कियों की जिंदगी में तूफान तब आता है, जब फेसबुक पर उनकी खास सहेली की तस्वीर को रोजाना उनका ही बॉयफ्रेंड लाइक करना शुरु कर देता है। शादी शुदा मर्दों की जिंदगी तूफानों से भरी होती है। मसलन दावों के विपरित जब पत्नी को पति के सही वेतन का पता लगता है तो तूफान आता है। एक महीने का वादा कर घर आई सास जाने का नाम न ले तो तूफान आता है। व्हाट्सएप पर एक ही दिन में पति की महिला मित्र के गुडमॉर्निंग और गुडनाइट मैसेज पर नजर पड़ जाए तो तूफान आता है। शादी शुदा मर्दों की जिंदगी में तूफान कब कैसे किस बात पर और कितने वेग का आएगा-इसकी भविष्यवाणी दुनिया का कोई मौसम विभाग आज तक नहीं कर पाया। ऐसा नहीं है कि शादीशुदा महिलाओं की जिंदगी में भी तूफान नहीं आते लेकिन ये प्राय: मर्दों की तुलना में कम होते हैं। राजनेताओं को घरेलू मोर्चों पर छोड़ दें तो ईश्वर प्रदत्त वरदान है कि वो सिर्फ तूफान लाने के लिए बने हैं, झेलने के लिए नहीं। अलबत्ता उनकी जिंदगी में भी दो बार तूफान आता है। एक, जब आलाकमान बेरहमी से टिकट काट देता है। दूसरा, चुनाव में हारने की घोषणा के साथ ही घर में लगने वाली कार्यकर्ताओं की भीड़ कट लेती है। अंग्रेजी साहित्यकार की जिंदगी में तूफान तब आता है-जब रॉयल्टी का चेक बाउंस हो जाए। और हिन्दी साहित्यकार को चेक मिल जाए तो इसी खुशी में वो तूफान सिर पर उठा लेता है। टीवी चैनलों के दफ्तर में जब टीआरपी नहीं आती तो तूफान आता है। दुनिया में कहीं तूफान आए, अगर चैनलों को टीआरपी मिल रही है तो उनके दफ्तर तक तूफान का असर नहीं होता। लेकिन टीआरपी नहीं आए तो दुनिया में भले परम शांति हो-दफ्तर में तूफान मचा रहता है। ऐसे में मनोरंजक चैनल पुनर्जन्म की किसी कहानी को नए कलेवर में ले आते हैं तो न्यूज चैनल किसी हनीप्रीत को खोज लाते हैं। कुछ नहीं मिलता तो भानगढ़ के किले पर दांव लगाते हैं। दरअसल, भांति भांति के तूफान हैं, और सबके अपने तूफान हैं। बॉक्स ऑफिस पर हर शुक्रवार को तूफान आता है, जिसमें दो चार फिल्में टीन टप्पर के साथ उड़ जाती हैं। उनका नामलेवा नहीं बचता। किसान की जिंदगी में तूफान तब आता है-जब कर्ज लेकर बोई फसल बेमौसम बारिश या ओले से खराब हो जाती है। किसानों के परिवार में तूफान तब आता है, जब महज 40-50 रुपए कर्ज न चुका पाने की मजबूरी में किसान खुदकुशी कर लेता है। दरअसल, तूफान भौतिक कम मानसिक ज्यादा होता है और मुद्दा मानसिक तूफान को ही काबू में करने का है। वरना सच यही है कि आम गरीब की जिंदगी में जितने तूफान एक साथ आते हैं-उसका एक फीसदी भी मध्यवर्ग की जिंदगी में आ जाता है तो लोगों को मौत के अलावा कोई चारा नहीं दिखता। गरीब तूफान झेलने का अभ्यस्त होता है। वो तूफानों से घबराता नहीं उसका सामना करता है। तूफानों को झेलने के उसके जज्बे को सलाम !!