Tuesday, September 29, 2015

न्यूज़ एंकर के लिए क्रैश कोर्स ( व्यंग्य)

इन दिनों पत्रकारिता का कोर्स करने वाला हर विद्यार्थी टेलीविजन न्यूज एंकर बनना चाहता है। इन विद्यार्थियों का मानना है कि न्यूज़ एंकर ही असल पत्रकार है और बाकी लोग चैनल में घास टाइप की कोई चीज़ खोदते हैं। चूंकि, टेलीविजनी वर्ण व्यवस्था में एंकर सवर्ण है इसलिए एंकर बनना आसान नहीं है। कई जन्मों में पुण्य किए होते हैं तब एंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है। फिर भी, कर्म की थ्योरी को खारिज नहीं किया जा सकता और विद्यार्थी चाहें तो कुछ खास अभ्यास करके एंकर बन सकते हैं। 80 फीसदी छात्र निम्नलिखित क्रैश कोर्स से फायदा उठा सकते हैं। पढ़ाई-लिखाई करने वाले इस कोर्स से दूर रहें। 1-एंकर बनने के लिए जरुरी है कि बंदा रोज सुबह और शाम आधा घंटा चिल्लाने का अभ्यास करें। एक अच्छे एंकर के लिए जरुरी है कि वो चिल्लाने का रियाज उसी तरह करे, जैसे गायक गायकी का रियाज़ करता है। बहुत संभव है कि ऐसा करने से आपके माता-पिता नाराज़ हों, पड़ोसी आपको देखकर नाक-मुंह सिकोड़े लेकिन आप चिल्लाने की प्रैक्टिस बदस्तूर जारी रखें। 2-रोज़ रात गर्म पानी से नमक डालकर गरारे करें। मुलेठी चबाएं। और आइसक्रीम से थोड़ा परहेज़ करें। ऐसा करने से आपका गला नहीं बैठेगा और आप नियमित तौर पर चिल्ला सकेंगे। 3-एक बेहतर एंकर के लिए जरुरी है कि वो तमाम चीखों के बीच भी अपनी बात पूरी करके दम ले। यानी कुत्ते-बिल्लियां भौं भों, म्याऊं म्याऊं करते रहें लेकिन वो आपके ध्यान को तोड़ न पाएं। आप शोरगुल में कतई न भटकें और अपनी बात पूरी करके दम लें। 4-बाजार में सुंदर दिखने की जितनी क्रीम होंगी-यदि आप एंकर बनना चाहते हैं तो वे सब आपके पास पहले से होंगी। फिर भी ध्यान रखें कि अच्छी क्वालिटी की क्रीम लगाएं क्योंकि घटिया क्वालिटी की क्रीम आपकी मुलायम त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती है और एक एंकर इस तरह का जोखिम नहीं ले सकता। 5-एंकर बनता नहीं पैदा होता है। मतलब-आपके सामने कोई भी महान गेस्ट बैठा हो-आप उसे मूर्ख समझिए। क्योंकि अगर अक्लमंद की अक्लमंदी को आपने अपने ऊपर हावी होने दिया तो फिर पूरा कार्यक्रम चौपट हो जाएगा। 6-नए युग में एंकर के लिए हेलमेट पहनना भी जरुरी होने वाला है। तो आप एंकरिंग का अभ्यास हेलमेट पहनकर करें तो बेहतर होगा। इससे जब आप वास्तव में एंकरिंग करेंगे तो हेलमेट से दिक्कत नहीं होगी। 7-एंकर बनने का पढ़ने लिखने से कोई वास्ता नहीं है, और यदि आप समझते हैं कि मार्क्स,गांधी,लोहिया वगैरह को पढ़ना आपके लिए फायदेमंद रहेगा तो समझ लीजिए कि इससे समय की बर्बादी के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा। अच्छा होगा कि आप तमाम बाबाओं, बाबियों और हर फील्ड के स्कैंडल्स के बारे में जानें। 8-एंकर में एक एटीट्यूड होना चाहिए। अगर आप टीवी पर दिखते हैं तो फिर वो अहंकार चेहरे पर आना चाहिए। यानी एंकर बनने की कोशिश के दौरान ही ये प्रैक्टिस भी करें कि आप शाहरुख/कैटरीना की कैटेगरी के स्टार हैं, जिसे ऐरी गैरी जनता छू नहीं सकती। 9-आप भले हिन्दी चैनल का एंकर बनने की कोशिश करें लेकिन लोगों के बीच अंग्रेजी में बोलें। और इंग्लिश नहीं आती तो कम से कम दो काम जरुर करें। हर चौथे शब्द के बीच यू नो जरुर बोलें और हर पांचवे शब्द के बाद 'येSSS ' जरुर बोले... 10-दूरदर्शन के जमाने का कोई एंकर अगर आपको बता चुका है कि एंकर बनने के लिए अखबार पढ़ना जरुरी है, और आप उसका सम्मान करते हैं तो वक्त निकालकर दिन में दो चार मिनट अखबार भी पढ़ ही लीजिए। किरपा आएगी ।

Friday, September 18, 2015

पीएम की सिलिकॉन वैली की यात्रा का सबब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी आगामी अमेरिकी यात्रा के दौरान सिलिकॉन वैली जाएंगे तो इसका मतलब क्या है? फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, एपल के सीईओ टिम कुक और एडोब के सीईओ शांतनु नारायण समेत सूचना तकनीक के तमाम दिग्गजों से उनकी मुलाकात होनी है तो क्या ये सिर्फ एक राष्ट्र प्रमुख की विदेशी निवेश की चाहत लिए कुछ तकनीकी कंपनियों के दिग्गजों से मुलाकात भर होगी या इस मुलाकात के बाद भारत में सूचना तकनीक की दुनिया को नयी दिशा मिलेगी ? दरअसल, सवाल कई है क्योंकि नरेंद्र मोदी खुद सोशल मीडिया के माहिर खिलाड़ी हैं, नयी तकनीक का महत्व समझते हैं और 'डिजिटल इंडिया' के ख्वाब को साकार करना चाहते हैं। नरेंद्र मोदी की यात्रा से पहले अमेरिकी शिक्षाविदों ने उनके खिलाफ सूचना तकनीकी कंपनियों को खत लिखकर विरोध भी जताया और अब इस विरोध को लेकर मोदी समर्थक और विरोधी आपस में भिड़े हुए हैं। दरअसल, मोदी के डिजिटल इंडिया अभियान पर सवाल उठाते हुए अमेरिका के कुछ शिक्षाविदो सिलिकन वैली की प्रमुख कंपनियों को खत लिखकर कहा था कि डिजिटल इंडिया निजता का हनन है। खत में प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों को भारत सरकार के साथ काम करने के खतरों के प्रति आगाह करते हुए कहा गया था कि मोदी सरकार ने सांस्कृतिक एवं शैक्षिक संस्थानों की स्वायत्तता के अलावा नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के प्रति अपना असम्मान दिखाया है। यह खत सामने आया तो मोदी समर्थकों ने शिक्षाविदो को कठघरे में खड़ा करते हुए सवाल किया कि सबसे ज्यादा निजता का उल्लंघन तो अमेरिका में ही होता है, जहां प्रिज्म जैसा प्रोजेक्ट बाकायदा सरकार के नेतृत्व में चला। इसके अलावा विरोधी अब मोदी का विरोध नहीं बल्कि राष्ट्र विरोधी बातें कर रहे हैं, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इस विरोध ने यह भी जता दिया कि मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान सोशल मीडिया पर एक बहस बदस्तूर जारी रहेगी। लेकिन मुद्दा बेमानी बहस का नहीं है क्योंकि मोदी का अमेरिका जाना भी तय है और सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों से मिलना भी क्योंकि वे मोदी के लिए पलक पांवड़े बिछाए बैठे हैं। फेसबुक मुख्यालय में तो नरेंद्र मोदी मार्क जुकरबर्ग के साथ उपयोक्ताओं के सवाल-जवाब सत्र में भी हिस्सा लेंगे। दरअसल, नरेंद्र मोदी की सिलिकॉन वैली यात्रा को इस आधार पर नापा जाना चाहिए कि मोदी वहां से क्या लाते हैं? क्योंकि फेसबुक, ट्विटर, गूगल और एपल जैसी तमाम कंपनियों के लिए तो भारत सबसे बड़े बाजारों में एक है, और इन कंपनियों की भावी सफलता अब इस बात पर ही निर्भर है कि उन्हें भारत में कितनी जगह मिलती है। फेसबुक के भारत में फिलहाल 14 करोड़ यूजर्स हैं, और अगले दस साल में फेसबुक की योजना इन्हें 100 करोड़ तक पहुंचाने की है। गूगल स्ट्रीट व्यू कारों का संचालन भारत में करना चाहता है। इसके लिए बाकायदा सरकार के पास आवेदन किया गया है और मोदी संभवत: खुद गूगल मुख्यालय में इस बात की घोषणा करना चाहते हैं कि गूगल स्ट्रीट व्यू कारों के संचालन को भारत में मंजूरी दी जाती है क्योंकि 14 सितंबर को मोदी ने गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय को खत लिखकर गूगल के आवेदन का स्टेटस पूछा। और दोनों से महज तीन दिनों के अंदर जवाब देने को कहा गया। बावजूद इसके कि गूगल की स्ट्रीट व्यू कारों को लेकर कई देशों में आपत्ति जताई जा चुकी है और संवेदनशील ठिकानों की तस्वीरें लेने को लेकर स्ट्रीट व्यू कार कठघरे में खड़ी की गई, मोदी स्ट्रीट व्यू कारों को लेकर उत्सुक हैं तो वजह यही है कि गूगल को एक तोहफा दिया जा सके। हालांकि, इस बारे में सरकार का आखिरी रुख साफ नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि गूगल को भारत सरकार की तरफ से तोहफा मिल सकता है। सिलिकॉन वैली की सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां भारत में कितना निवेश करती हैं-ये आने वाले दिनों में पता चलेगा क्योंकि मोदी की नजर उस निवेश पर भी होगी। लेकिन बड़ा सवाल निवेश का नहीं तकनीक का है। आखिर सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां भारत को ऐसी कौन सी तकनीक देती हैं या ऐसे कौन से एप्लीकेशन बनाने में भारतीय कंपनियों को मदद करती हैं,जिनसे आम भारतीयों को लाभ हो। सूचना तकनीक के दिग्गजों के बीच खड़े मोदी से यह सवाल तो किया ही जा सकता है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि दुनिया की नामी कंपनियों के सीईओ भारतीय हैं और वहां काम करने वाला बड़ा वर्ग भारतीयों का है पर भारत कभी गूगल-फेसबुक या एपल जैसी कंपनी नहीं बना सका। बीते दो दशकों से भारत सॉफ्टवेयर निर्यात के जरिए सूचना तकनीक क्षेत्र को सींच रहा है और आज भी मूलत: वही हाल है। सिलिकॉन वैली यात्रा से मोदी के डिजिटल इंडिया कैंपेन को कितना फायदा होता है-ये भी बड़ा सवाल है। क्योंकि अभी डिजिटल इंडिया कैंपेन की सफलता में अमेरिकी कंपनियों की भूमिका कम दिख रही है। वजह ये कि डिजिटल इंडिया की सफलता भारत में मौजूद बुनियादी ढांचे से जुड़ी है। सरकार ने डिजिटल इंडिया को लेकर जो योजना बनाई है, सवाल उसके क्रियान्वयन की तैयारी का है? ब्रॉडबैंड हाइवे के मामले में सबसे बड़ी बाधा है कि नेशनल ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क का प्रोग्राम, जो करीब चार साल पीछे चल रहा है। क्या अचानक तार बिछाने की गति तेज की जा सकती है और ये सवाल इसलिए भी इस संबंध में यूपीए सरकार भी मानती थी कि फाइबर ऑप्टिक्ल्स तेजी से बिछाने चाहिए। सरकार का दूसरा लक्ष्य है सबके पास फोन की उपलब्धता। लेकिन, जिस देश में गरीबी की परिभाषा 28 रुपए और 33 रुपए में उलझी हो तो वहां क्या ये संभव है। सरकार हर किसी के लिए इंटरनेट चाहती है तो यह बहुत अच्छी बात है। लेकिन पीसीओ की तर्ज पर इंटरनेट एक्सेस प्वाइंट का खांका तो बहुत साल से तैयार है, जिस पर अभी तक अमल नहीं हो पाया। राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन अपने पहले चरण में अपने लक्ष्य से खासा पीछे चल रहा है। सरकारी दफ्तरों को डिजिटल बनाने और सेवाओं को नेट से जोड़ने के मामला इतना आसान नहीं है क्योंकि काम तो लोगों को ही करना है। कई दफ्तर जो डिजिटल हो चुके हैं, वहां काम करने वाले लोग खुद को तैयार नहीं कर पा रहे हैं। यानी एक नयी डिजिटल फौज की जरुरत होगी। ई-लॉकर जैसी तमाम योजनाएं जो आम शहरी के लिए फायदेमंद है, उसका प्रचार नहीं हो पा रहा। फिर स्टार्टअप्स के लिए कारोबारी माहौल तैयार करने और उनके लिए धन की व्यवस्था करने जैसे मुद्दे भी है। यानी देश में सूचना तकनीक को गति देने के मामले में जो चुनौतियां हैं, उनसे सरकार को ही पार पाना है और इसमें फेसबुक-गूगल जैसी कंपनियां ज्यादा भूमिका नहीं निभा सकती। तो इंतज़ार कीजिए मोदी की सिलिकॉन वैली यात्रा से हासिल का।

Tuesday, September 8, 2015

कॉल ड्रॉप के फायदे ( व्यंग्य)

क्या आप कॉल ड्रॉप की समस्या से परेशान हैं? क्या आप कॉल ड्रॉप की वजह से झुंझलाए रहते हैं? क्या आपको लगता है कि कॉल ड्रॉप की वजह से आपकी ज़िंदगी नरक हो गई है? यदि हां, तो यह व्यंग्य आपके लिए है,क्योंकि समस्या पीड़ितों के लिए यह व्यंग्य नहीं गंभीर आलेख है। या कहें ऐसा बंगाली दवाखाना है, जो खुद आपके पास चलकर आया है। दरअसल, कॉल ड्रॉप यानी मोबाइल पर बात करते करते कट जाने की समस्या उतनी बुरी नहीं जितनी आपको लग रही है। सच तो यह है कि कंपनियां कॉल ड्रॉप कर करके ग्राहकों को सुविधा दे रही हैं। कॉल ड्रॉप के रुप में ग्राहकों को ऐसी रहमत मिली है, जिसके लाभ के बारे में वे सोच ही नहीं रहे। मसलन सुबह आपका बॉस फोन करता है तो आप क्या करते हैं? आप फोन उठाते हैं और सबसे पहले सुबह उस शख्स की आवाज़ सुनते हैं, जिसकी आवाज़ आप सिवाय उस दिन के नहीं सुनना चाहते, जब वो आपको बुलाकर इंक्रीमेंट लैटर देता है। लेकिन सुबह सुबह आपको वो फटी आवाज़ सुननी पड़ती है क्योंकि फोन उठाना आपकी मजबूरी है। जबकि फोन कब रखा जाएगा, यह तय करना बॉस का अधिकार। बॉस किसी भी बात के लिए आपको फोन करता है। मसलन-कई बॉस पहले एसएमएस करेंगे और फिर फोन करेंगे कहेंगे-"यार एक एसएमएस किया है, देख लेना।" अरे ! जब फोन ही करना तो एसएमएस क्यों किया। लेकिन, कॉल ड्रॉप की समस्या ने झटके में सर्वहारा वर्ग को साम्राज्यवादी शक्तियों के बराबर ला खड़ा किया है। अगर आपको बॉस की आवाज़ पसंद नहीं आ रही तो आप हैलो हैलो करते हुए फोन काट सकते हैं और इसका ठीकरा कॉल ड्रॉप पर फोड़ सकते हैं। चूंकि यह समस्या सर्वविद्यमान है तो आप की नीयत पर शक करना बॉस के लिए आसान नहीं होगा। बॉस की छोड़िए, कॉल ड्रॉप की सुविधा का लाभ उन अनंत आशिकों को भी मिल सकता है, जिनके पास ऐसी गर्लफ्रेंड हैं, जो फेविकोल की ब्रांड एम्बेसेडर हुए बिना उसका प्रचार कर रही हैं। मसलन-कई गर्लफ्रेंड फोन पर एक ही सवाल इतनी बार पूछती हैं कि बंदा लगभग मूर्छित होने की स्थिति में आ जाता है। कई सगाई धारक और विवाह को प्रतीक्षारत भावी दुल्हे अपनी मंगेतर के सवालों से इतना परेशान हो जाते हैं कि अगर आलस्य का गुण उनमें कूट कूटकर न भरा हो तो वे रजाई से निकलकर अपना सिर कहीं पटक आएं। आलस्य नामक गुण मंगेतर के कई सवालों को एक हजार बार सुनने के बावजूद उन्हें आत्महत्या की कोशिश से बचाए रखता है। मसलन-शादी से छह महीने पहले ही मंगेतर पूछने लगती है- हम शादी के बाद कहां रहेंगे। तुम्हारी मम्मी हमारे साथ रहेंगी या देवर जी के साथ। मैं पहले ही बता रही हूं कि मुझे खाना बनाना नहीं आता। हम हनीमून पर मॉरीशस जा रहे हैं न। तुमने स्विटजरलैंड की टिकट बुक करा ली न ! वगैरह वगैरह। मंगेतर के ऐसे सवालों के विकट दौर में कॉल ड्रॉप की समस्या वरदान साबित हो सकती है। कॉल ड्रॉप का सबसे बड़ा फायदा है कि बेईमान और अनैतिक होते हुए भी आप नैतिक और ईमानदार बने रह सकते हैं। कलयुग में यह कॉम्बो ऑफर किस्मतवालों को ही मिलता है। या कहिए कि जिस तरह दिखते सभी को हैं लेकिन प्लेन के सस्ते टिकट हर ग्राहक को नहीं मिल पाते उसी तरह अनैतिक होते हुए नैतिक दिखने का वरदान सबको नहीं मिलता। तो अब आप समझ गए होंगे कि कॉल ड्रॉप कोई समस्या नहीं बल्कि टेलीकॉम कंपनियों द्वारा ग्राहक को दी जा रही एक अदृश्य सुविधआ है। आप भी कॉल ड्रॉप सुविधा का लाभ उठाइए और जीवन का भरपूर आनंद लीजिए।