Thursday, April 2, 2009

चुनाव आयोग के लिए नया सिरदर्द है मोबाइल कैंपेन

ब्लॉग और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के अलावा जिस माध्यम पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रही हैं-वो है मोबाइल फोन। इसकी बड़ी वजह है। भारत में करीब 71 करोड़ मतदाता और करीब 38 करोड़ मोबाइल धारक हैं। और तकरीबन 36 करोड़ मोबाइल धारक वोटर हैं। दूसरी तरफ, इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या अभी महज आठ-नौ करोड़ के आसपास है। यानी मोबाइल के जरिए वोटरों को लुभाना आसान है। राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार अपने अपने संसाधनों के बीच मोबाइल का इस्तेमाल करने में जुट गए हैं। सूत्रों के मुताबिक हाईटेक प्रचार में अग्रणी भारतीय जनता पार्टी डू-नॉट-कॉल रजिस्टरी से बाहर करीब 25 करोड़ मोबाइल धारकों को चुनाव के दौरान एसएमएस भेजेगी। कांग्रेस बीजेपी से भले पीछे रहे,लेकिन करीब 15 से बीस करोड़ उपभोक्ताओं तक वो भी इस माध्यम के जरिए पहुंचने की कोशिश करेगी। बाकी राजनीतिक दलों के अलावा अपने अपने स्तर पर राजनेता भी अपने संसदीय क्षेत्र के वोटरों से मोबाइल फोन के जरिए संवाद स्थापित करेंगे। कर्नाटक, दिल्ली, मुंबई में ये कवायद शुरु हो चुकी है। वोटरों को अंग्रेजी के अलावा अब हिन्दी में भी एसएमएस भेजे जा रहे हैं। उम्मीदवारों की शिक्षा,पिछला रिकॉर्ड और विभिन्न मसलों पर उनके विचार भी एसएमएस के जरिए भेजे जाने की बात कही गई है।तमिलनाडु की एसएमएस समेत अन्य मोबाइल सेवा देने वाली कंपनी एयर टू वेब राजनीतिक वॉयस मैसेज भेजने की तैयारी में है,जिसके तहत आपके क्षेत्र का उम्मीदवार अपनी आवाज में वोट मांगेगा। टेलीकॉम ऑपरेटरों को उम्मीद है कि वो इन चुनावों के दौरान करीब चार अरब एसएमएस भेजेंगे और इससे उनकी करीब 50 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय होगी। लोकल स्तर पर जो एसएमएस भेजे जाएंगे,उसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। जानकारों के मुताबिक एक उम्मीदवार 80 लाख से एक करोड़ एसएमएस जरुर भेजेगा क्योंकि इससे कम एसएमएस कैंपेन का कोई अर्थ नहीं है। इस कैंपेन पर 10 पैसे प्रति एसएमएस के हिसाब से उम्मीदवार आठ से दस लाख रुपए कम से कम खर्च करेंगे। दरअसल,इस नए मद में उम्मीदवार और पार्टियां कितना खर्च करेंगी,इसका कोई हिसाब-किताब ही नहीं है। हालांकि,पंजाब के चुनाव आयोग ने साफ किया है कि चुनावी आचार संहिता के मुताबिक उम्मीदवारों को एसएमएस कैंपेन पर किए खर्च का ब्योरा देना होगा,और मतदान के दो दिन पहले एसएमएस कैंपेन बंद करना होगा। हालांकि, टेलीकॉम आपरेटर इस फरमान से खुश नहीं है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या एसएमएस पर खर्च की गई राशि का पता लगाया जा सकता है? चुनाव आयोग पहली बार इस नयी समस्या से रुबरु है,और तमाम घुड़कियों के बावजूद उसके पास इस खर्च पर लगाम का कोई सीधा रास्ता नहीं है। ऐसे में,मोबाइल कैंपेन के परवान चढ़ने का इंतजार कीजिए,और अगर आप इस कैंपेन में दिलचस्पी नहीं रखते,तो फौरन अपना मोबाइल नंबर डू-नॉट-कॉल में रजिस्टर्ड कीजिए। ताकि,शायद राजनीतिक एसएमएस के तूफान में आप थोड़ा बच पाएं।

लेफ्ट तुझे क्या हुआ ?
एक ज़माने में कम्प्यूटर की भरसक विरोधी रही लेफ्ट पार्टियां साइबर कैंपेन के दौर में धुआंधार हाईटेक हो ली हैं। न जाने क्यों,लेफ्ट को लग रहा है कि युवाओं को लुभाने का इंटरनेट सबसे उपयोगी माध्यम साबित हो सकता है। यही वजह है कि पहले सीपीएम ने खास चुनावी मकसद से 18 मार्च को वेबसाइट लांच की-वोटडॉटसीपीआईएमडॉटओआरजी। लेकिन,लेफ्ट पार्टियों की अगुआ सीपीएम को लगता है कि हर राज्य के युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए अलग वेबसाइट होनी चाहिए। इसीलिए,केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी सीपीएम,सीपीआई,आरएसपी,केरल कांग्रेस(जोसेफ),जनता दल(लेफ्ट) आदि के उम्मीदवारों के साइबर प्रचार के लिए दो अलग वेबसाइट लॉन्च की गई हैं। एक अंग्रेजी में-एलडीएफडॉटओआरजीडॉटइन और दूसरी मलयालम में वोटफॉरएलडीएफडॉटइन। इन दोनों साइटों पर कांग्रेस और बीजेपी पर जमकर निशाना साधा गया है। कांग्रेस की यूपीए सरकार की नाकामियों को गिनाया गया है,और अपने उम्मीदवारों की तस्वीरों समेत उनके बारे में जानकारी दी गई है। लेकिन,युवा मतदाता क्या सिर्फ सूचना लेने के लिए साइट पर आएंगे। दोनों साइटों पर
'इंटरेक्टिविटी' पर खास ध्यान नहीं दिया है। ऐसे में,ये दोनों साइटें युवा मतदाताओं को कैसे लुभाएगी,ये चुनाव बाद ही पता चलेगा।

ऑनलाइन बनाओ प्रधानमंत्री !
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को इराक में जूता क्या पड़ा,इस हादसे पर ऑनलाइन गेम बन गया। फिर,टेलीविजन चैनलों ने दो दिन बताया कि बुश को अभी तक कितने जूते पड़ चुके हैं। खैर,अब बात बुश की नहीं,मनमोहन और आडवाणी की है। वैसे,दोनों नेता खुशकिस्मत हैं कि वर्चुअल दुनिया में उनकी ठुकाई पिटाई नहीं हो रही। ओलंपिक गेम्स की थीम पर यहां नेताओं का कंपटीशन जारी है। ऑनलाइन गेम्स की कुछ साइटों पर इस तरह के राजनीतिक गेम्स शुरु हो चुके हैं,जबकि कुछ जल्द ही अपने गेम लॉन्च करने वाली हैं। पॉलिटिकल ऑनलाइन गेम बनाने वाली एक कंपनी के अधिकारी का कहना है कि ये गेम्स राजनीतिक जागरुकता फैलाने और थकान से राहत देने का काम करते है।खैर,अच्छी बात ये है कि नतीजों के लिए बेचैन लोग ऐसी साइटों पर जाकर गेम खेल सकते हैं,और अच्छा खेले तो अपना प्रधानमंत्री खुद चुन सकते हैं। ऐसी ही एक साइट है-ऑनलाइनरियलगेम्सडॉटकॉम। ये गेम्स फ्री हैं। हां,गेस्ट बनकर खेलने में ज्यादा मजा नहीं आता।

एक एसएमएस :
संटी (बंटी से) - इस बार चुनावों में संघ की ही चलेगी। इंटरनेट पर तो कोई दूसरी पार्टी उसके आसपास नहीं फटक सकती।
बंटी (संटी से)- ऐसा क्यों
? संघ तो चुनाव भी नहीं लड़ती।
संटी (बंटी से)- बेटा,नहीं लडती तो क्या। आरएसएस फीड तो सिर्फ उसी के पास है।

(दैनिक भास्कर का पोल टेक स्तंभ, 2 अप्रैल को प्रकाशित)

1 comment:

  1. खबरें प्रकाशित करने से रोकने का आदेश देने से कोर्ट का इनकार

    एचटी मीडिया बनाम भड़ास4मीडिया : सुनवाई की अगली तारीख 24 जुलाई

    शैलबाला-प्रमोद जोशी प्रकरण से संबंधित खबरें भारत के नंबर वन मीडिया न्यूज पोर्टल भड़ास4मीडिया पर पब्लिश किए जाने के खिलाफ एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दायर केस की पहली सुनवाई आज हुई। वादी एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी की तरफ से दायर केस में भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह और तीन अन्य को प्रतिवादी बनाया गया है। हाईकोर्ट में दर्ज इस केस संख्या सीएस (ओएस) 332/2009 की सुनवाई हाईकोर्ट के कोर्ट नंबर 24 में विद्वान न्यायाधीश अनिल कुमार ने की।

    इस दौरान एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी की तरफ से हाजिर हुए वकील ने केस निपटारे तक भड़ास4मीडिया पर एचटी मीडिया और इससे जुड़े लोगों से संबंधित खबरें प्रकाशित न करने देने का आदेश पारित करने का अनुरोध कोर्ट से किया। इस बाबत एचटी मीडिया और अन्य की तरफ से कोर्ट में अर्जी भी दी गई थी। कोर्ट ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया। प्रतिवादियों की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील निलॉय दासगुप्ता ने कोर्ट को जानकारी दी कि कुछ प्रतिवादियों ने नोटिस 29 मार्च को रिसीव किया है और एक प्रतिवादी के पास अभी तक नोटिस सर्व नहीं हुआ है। इस पर कोर्ट ने वादी एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी के वकील को सभी प्रतिवादियों को नोटिस समेत सभी जरूरी दस्तावेज मुहैया कराने के आदेश दिए। प्रतिवादियों को अगले चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने को कहा गया है। मामले की अगली सुनवाई की तारीख 24 जुलाई तय की गई है। प्रतिवादियों के वकील निलॉय दासगुप्ता ने बाद में बताया कि एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी की तरफ से जो केस दायर किया गया है, उससे संबंधित जो नोटिस प्रतिवादियों के पास भेजा गया है, उसमें कई चीजें मिसिंग हैं। उदाहरण के तौर पर नोटिस के पेज नंबर 117 पर जिस कांपैक्ट डिस्क के होने का उल्लेख किया गया है, वो नदारद है। साथ ही सभी प्रतिवादियों को अभी तक नोटिस सर्व नहीं हुआ है। ऐसे में कोर्ट ने वादियों के वकील को सभी दस्तावेज व कागजात प्रतिवादियों को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। वेबसाइट पर वादियों से संबंधित कंटेंट पब्लिश न करने को लेकर जो अनुरोध कोर्ट से किया गया, उसे नामंजूर कर दिया गया।

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