Tuesday, March 31, 2009

अब तो बस मज़ा लीजिए ख़बरों के प्रोमों का !

इस लम्हे की अपनी अहमियत थी। टाटा की लखटकिया कार लॉन्च हो रही थी। कार खरीदने का ख्वाब पाली हज़ारों आंखें टेलीविजन के स्क्रीन पर टकटकी लगाए बैठी थीं। आखिर,सूचनाओं के रुप में कई सवालों के जवाब चाहिए थे उन्हें ! कितने की है नैनो ? कैसे होगी नैनो की बुकिंग? कब तक मिलेगी लखटकिया कार,और कितनों को मिलेगी वगैरह वगैरह। दिलचस्प ये कि नैनो की इस लॉचिंग को भी कुछ न्यूज चैनलों ने सनसनीख़ेज बना दिया। यकीं नहीं होता तो गौर फरमाइए। "इतने करीब से नहीं देखी होगी आपने नैनो। हम बताएंगे आपको नैनो का एक-एक राज़।" फिर,कुछ इसी तरह की लाइनें नैनो की ख़बर से जुड़े प्रोमो में भी दिखायी दी।

लेकिन बात सिर्फ इस इकलौती ख़बर की नहीं है। बात नैनो की भी नहीं है। बात है प्रोमो की। न्यूज़ चैनलों पर नैनो के प्रोमो ने एक बात साफ कर दी कि अब सॉफ्ट न्यूज़ भी दमदार वॉयस ओवर में लपेटकर, सनसनीखेज बनाकर बेचने का ट्रेंड शुरु हो चुका है। टीआरपी पाने की रेस में न्यूज चैनलों की ग्रामर लगातार बदल रही है। सॉफ्ट ख़बर का हार्ड प्रोमो इससे जुड़ती नयी कड़ी है। बिग बॉस के घर में कंटेस्टेंट खेल खेल में भूत बनते हैं,और एक दूसरे को डराते हैं,तो इसका प्रोमो भी रहस्य और सनसनी के आवरण में बुना जाता है-"बिग बॉस के घर में किसका साया, ये कोई भूत है या प्रेतात्मा,संभावना सेठ ने किसको देखा,राजा चौधरी किस साए को देखकर बुरी तरह डर गए"।

वैसे प्रोमो लिखना हमेशा से आर्ट माना जाता है। प्रोग्राम का प्रोमो देखकर ही कई बार दर्शक फैसला करता है कि उसे देखा जाए या नहीं। लेकिन,हर एक प्वाइंट टीआरपी के लिए मारामारी मचाने पर उतारु न्यूज चैनल में अब इस आर्ट ने सनसनीखेज शब्दों को जोड़कर अल्ल-बल्ल प्रोमो लिखने लगे हैं। मसलन-मौत के फरिश्तों की उन्होंने की खिदमत,वो धरती पर बन गए यमराज के कॉन्ट्रैक्टर। दुनिया के सबसे बड़े कातिल को देखिए रात.....। इसी तरह, "तीन सिरों वाला एक जहरीला सांप, जो एक जमाने से सोया हुआ था। जाग गया है...वो बढ़ रहा है कि वादी ए कश्मीर की तरफ..क्या होगा अंजाम।" एक और उदाहरण देखिए-"एक स्कूल…जहां बाथरूम जाते ही…लडकियां हो जाती है…बेहोश…क्या है बाथरूम का राज?"

ऐसे प्रोमो की लंबी लिस्ट है,और अब ये सामान्य हैं। सी ग्रेड फिल्म के डालयॉग की तरह प्रोमो की भाषा में वो शब्द और वाक्य इस्तेमाल होने लगे हैं, मानो दर्शक को पीटकर, जबरदस्ती कॉलर पकड़कर या ब्लैकमेल कर प्रोग्राम देखना ही होगा। दिलचस्प है कि कुछ वाक्य तो लगातार इस्तेमाल होते हैं। मसलन- आंखें बंद मत कीजिए, वर्ना ये जिंदगी में दोबारा नहीं देख पाएंगे। कान बंद मत कीजिए, नहीं तो ये चीजें फिर कभी नहीं सुन पाएंगे। अगर आपके घर में मां है, बहन है, बेटी है, बहू है तो ये खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। इस बार नहीं देखा, तो फिर कभी नहीं देख पाएंगे। देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री है ये। दुनिया का सबसे खौफनाक कातिल। दुनिया का सबसे घिनौना शख्स है ये। सिहर जाएंगे आप। दहल जाएंगे आप..वगैरह वगैरह।

न्यूज़ चैनलों की एक हद तक मजबूरी भी है कि उन्हें दर्शकों को हर हाल में टीवी स्क्रीन से चिपकाए रखना है,जिसके लिए उन्हें हर हथकंडा अपनाना पड़ता है। लेकिन, हर प्रोमो को सनसनीखेज बनाकर दर्शक को रोके रखने के चक्कर में कई बार संवेदनशील और बेहतरीन खबर भी हल्के से ले ली जाती हैं। यहीं चैनलों की 'क्रेडेबिलिटी' को झटका लगता है। दर्शक धीरे धीरे इन प्रोमो को देखकर मज़ा लेने लगे हैं। प्रोमो की भाषा और अंदाज अब उन्हें गुदगुदाने लगा है। वो इस बात से वाकिफ हैं कि 'दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य' किसी आश्रम के ढोंगी बाबा की ख़बर हो सकती है या 'देखिए दुनिया के सबसे खतरनाक रास्ते' ऐलान करता प्रोमो दिल्ली के द्वारिका इलाके के फ्लाईओवर की खबर हो सकती है,जहां ज्यादा एक्सीडेंट हो रहे हैं।
प्रोमो का फसाना हकीकत की जम़ी पर दम तोड़ देता है। तकरीबन हर बार। लेकिन,न्यूज़ चैनलों की बदलती ग्रामर के आइने में यह एक्सपेरीमेंट भी चल निकला है। दर्शकों को फंसा लेने वाले प्रोमो लिखना ही कॉपी राइटर की काबलियत मानी जा रही है। फिलहाल,इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रोमो दर्शक को गुदगुदा रहे हैं या हंसा रहे हैं। टीआरपी आनी चाहिए बस...।

(दैनिक जागरण समूह के अखबार आई-नेक्स्ट में 31 मार्च को संपादकीय पेज पर प्रकाशित लेख)

1 comment:

  1. माननीय महोदय,
    आज आपके ब्लाग पर आने का अवसर मिला। बहुत ही उपयोगी रचना है आपकी। यदि आप इन्हें प्रकाशित कराना चाहते हैं तो मेरे ब्लगा पर अवश्य ही पधारे। आप निराश नहीं होंगे।
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