केंद्र सरकार के बीते शुक्रवार को करीब 857 पोर्न साइट्स पर पाबंदी का आदेश सार्वजनिक हुआ तो हंगामा मच गया। सोशल मीडिया पर सरकार के इस कदम की जमकर मुखालफत भी हुई। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 2013 में दाखिल एक जनहित याचिका के संबंध में कार्यवाही करते हुए यह फैसला किया है। 'नैतिकता' और 'शालीनता' का हवाला देते हुए सरकार ने यह भी कहा कि यह प्रतिबंध उन साइट्स के खिलाफ है, जिन पर बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री उपलब्ध थी।
सरकार के इस फैसले और उस पर मचे हंगामे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मसलन क्या सरकार के फैसले का एक सिरा अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ता है? क्योंकि 8 जुलाई को ही सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट पर अश्लील साइट्स को ब्लॉक करने संबंधी मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि पोर्न साइट पर प्रतिबंध निजता और व्यक्तिगत आजादी के खिलाफ होगा। प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू ने कहा "अगर कोई मेरी कोर्ट में आता है और कहता है कि मैं एक वयस्क हूं और आप कैसे इस बात का फैसला करेंगे कि मैं वयस्क फिल्म देखूं या नहीं। व्यक्तिगत आजादी के मौलिक अधिकार की वजह से इस पर पाबंदी नहीं लगायी जा सकती है।" हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि ये एक गंभीर मसला है।
सवाल ये भी है कि क्या चंद साइट्स को ब्लॉक करने से क्या इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी रुक सकती है? क्योंकि प्रॉक्सी सर्वर के जरिए आसानी से अश्लीस साइट्स तक पहुंचा जा सकता है और आज के तकनीकी युग में प्रॉक्सी सर्वर के बारे में नयी पीढी जानती है और जो लोग नहीं जानते वे आसानी से इंटरनेट के जरिए जान सकते हैं। इसके अलावा, जब मोबाइल फोन के जरिए आसानी से पोर्न कंटेंट इधर-उधर किया जाना संभव है तो इंटरनेट पर अश्लील साइट्स पर पाबंदी का मतलब क्या है? इतना ही नहीं, भारत में अश्लील साइट्स नहीं देखने को लेकर कोई कानून नहीं है, जिसका सहारा लेकर सरकार पूरी तरह इन वेबसाइट्स पर पाबंदी लगा सके, और इसीलिए नैतिकता और शालीनता जैसे तर्कों के आसरे पाबंदी को अमली जामा पहनाया गया।
पोर्नोग्राफी के विषय में एक कहावत भी है-‘पोर्नोग्राफी इज द बीस्ट, विच थ्राइव ऑन द रिप्रेशन'। यानी पॉर्नोग्राफी ऐसा राक्षस है, जिसे जितना ज्यादा दबाया जाएगा, वह उतना ही ज्यादा ताकतवर बन जाएगा। इसलिए इंटरनेट पर अश्लील साइटों के खिलाफ पाबंदी का एक पहलू ये भी है कि साइट्स पर जितनी पाबंदी लगाई जाएगी, उतनी ही संख्या में नयी वेबसाइट्स शुरु होंगी।
लेकिन इसके विपरित एक सवाल यह भी है कि क्या पोर्न साइट्स पर पाबंदी जरुरी नहीं है? क्योंकि जिस तरह इंटरनेट के रथ पर सवार होकर अश्लील कंटेंट नैतिक प्रदूषण फैला रहा है। खासकर बच्चों के दिमाग को प्रभावित कर रहा है और बच्चों से संबंधित पोर्नोग्राफी के बाजार को बढ़ावा दे रहा है, उसके अपने खतरे तो हैं ही।
दरअसल, अश्लील साइट्स पर पाबंदी के फैसले में कई पेंच है, जिससे इसका सकारात्मक पक्ष दब जाता है, जबकि नकारात्मक पक्ष उजागर होता है। अच्छी बात यह है कि सरकार के इस फैसले के बाद पोर्न कंटेंट को लेकर समाज में दबी बहस फिर सतह पर आ गई, क्योंकि अश्लील वेबसाइट्स के हिमायती लोगों की बड़ी संख्या है और जो बात अभी तक आंकड़ों के इर्दगिर्द कही जाती थी, अब उसे चेहरे मिल रहे हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि समाज में वयस्कों को अश्लील सामग्री पढ़ने-देखने से रोकने का कोई आधार नहीं है। अश्लील साइट्स का अपना बाजार है, जो लगातार तेजी से बढ़ भी रहा है। पॉर्नहब नाम की एक कंपनी ने 2014 में भारत में पोर्नोग्राफी के ट्रेंड पर सर्वे करवाया था और इंटरनेट पोर्नोग्राफी के लिहाज़ से भारत दुनिया में पांचवें स्थान पर पाया गया था। इस सर्वे के मुताबिक भारत के 50 फ़ीसदी लोग अपने स्मार्टफ़ोन से ऑनलाइन पोर्नोग्राफी वेबसाइट पर जाते हैं। पॉर्न साइट देखने वाला औसत भारतीय सात पेज से ज़्यादा देखता है जो कि दुनिया के औसत से तीन गुना अधिक है। और सर्वे में ये भी पता चला कि मिजोरम, दिल्ली, मेघालय और महाराष्ट्र में पोर्नोग्राफी देखने वालों का सबसे बड़ा बाज़ार है। अमेरिकी वेबसाइट 'द डेली बीस्ट' के पोर्नहब के साथ मिलकर किए अध्ययन के मुताबिक भारत में पोर्न देखने के मामले में अब भारतीय महिलाएं भी बहुत तेजी से आगे निकल रही हैं। नए आंकड़ों के मुताबिक ऑनलाइन पोर्न देखने वाली महिलाओं की कुल संख्या में भारतीय महिलाओं की संख्या 26 फीसदी से बढ़कर 30 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई है। पिछले वर्ष यह आंकड़ा 26 फीसदी था। भारत में डिजिटल पोर्नोग्राफी का बाजार 500 करोड़ से ज्यादा का है।
लेकिन मुद्दा इंटरनेट-मोबाइल पर उपलब्ध अश्लील सामग्री से बच्चों के जुड़ाव का है और इस बहस में इस मुद्दे पर ही ज्यादा चर्चा नहीं हो रही। मैक्केफी के कुछ महीने पहले किए एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली के किशोरों में 53 फीसदी ऑनलाइन पोर्न सामग्री देखते हैं, जबकि 29 फीसदी दिन में कई बार अश्लील सामग्री देखते हैं।
इंटरनेट पर उपलब्ध अश्लील सामग्री तक बच्चों की सहज पहुंच की चिंताजनक है। इस बाबत अब बात होनी चाहिए। दुनिया के कई देशों में बच्चों के लिए इंटरनेट को सुरक्षित बनाने की दिशा में काम हो रहा है।चीन में ‘क्लीनिंग द वेब-2014’ अभियान के तहत 5०० से ज्यादा अश्लील वेबसाइटों को बंद कर दिया गया था। जर्मनी में ऐसी साइटों को रोकने के लिए ‘किंडर सर्वर’ शुरू किया गया। लेकिन भारत में ऐसी कोई कोशिश फिलहाल नहीं हुई।
यह अजीबोगरीब है कि सड़क पर गाड़ी चलाने के लिए हमें ड्राइविंग लाइसेंस लेने की आवश्यकता होती है। लेकिन इंटरनेट के सुपर हाइवे पर गाड़ी दौड़ाने के लिए किसी को किसी तरह के लाइसेंस अथवा ट्रेनिंग की कोई आवश्यकता नहीं। इंटरनेट के इस्तेमाल के बाबत लगातार हो रहे सर्वे बता रहे हैं कि घरों में बच्चे इंटरनेट किस तरह इस्तेमाल कर रहे हैं-इसका मां-बाप को अमूमन पता नहीं होता। इंटरनेट कनेक्शन देते वक्त इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर किसी तरह का कोई क्रैश कोर्स नहीं करातीं या जानकारी देतीं कि इंटरनेट पर क्या क्या सावधानियां बरती जाएं ताकि बच्चों के हाथों में सुरक्षित कंटेंट पहुंचे।
अश्लील साइट्स पर पाबंदी के बीच सरकार की तरफ से एक बयान यह भी आया है कि यह पाबंदी अस्थायी है लेकिन सच यही है कि इंटरनेट पर पोर्न कंटेंट को तकनीकी रुप से रोकना लगभग असंभव है। एक विकसित समाज में कौन क्या देखेगा-यह तय करना सरकार का काम नहीं है। यह लोगों को खुद तय करना होगा। लेकिन इंटरनेट के जरिए बहती अश्लीलता बच्चों के कोमल मन को प्रदूषित न करे-इसकी जिम्मेदारी किसकी है?
No comments:
Post a Comment