Saturday, October 3, 2009

गूगल बनाम गांधी ब्रांड

बापू के 140वें जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रमों और घोषणाओं के बीच एक खबर अचानक ध्यान खींच रही थी। वो थी गूगल का गांधी प्रेम। गूगल सर्च इंजन ने अपने Google के G को बापू के चेहरे में तब्दील कर दिया। इंटरनेट पर गूगल के इस गांधी प्रेम पर भारतीय समाचार पत्र, वेबसाइट्स और दूसरे समाचार माध्यम इतने प्रभावित हुए कि सभी ने इस खबर को तवज्जो दी।

सवाल ये कि गूगल को भारत के राष्ट्रपिता पर इतना प्यार कहां से आ गया? फिर,ये भी मुमकिन नहीं कि गूगल के कर्ता धर्ता अचानक गांधी के आदर्शों से रुबरु हुए,और सर्च इंजन पर उनकी तस्वीर टांग दी। ओबामा का गांधी की महानता पर भाषण भी बाद में आया, और गूगल इससे पहले ही बापू की तस्वीर टांग चुका था।

तो सवाल यही गूगल की इस कवायद का मकसद क्या है? सूचना तकनीक से संबंधित कई लोगों का तर्क है कि गूगल दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन है, और उसकी इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे अंहिसा को हथियार बनाने वाले बापू के आदर्शों को दुनिया भर में फिर जाना-पढ़ा जाएगा।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि गूगल दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन है। सर्च इंजन के करीब 85 फीसदी बाजार पर इसका कब्जा है। गूगल पर गांधी की तस्वीर देखकर नयी पीढ़ी,खासकर विदेशों में रह रहे नौजवानों को यह जानने की जिज्ञासा हो सकती है कि ये शख्स कौन है? 140 वें जन्मदिन पर गूगल की इस पहल का स्वागत भी किया जाना चाहिए।

लेकिन,क्या इस कवायद में गूगल का कोई स्वार्थ नहीं है? वैसे,ये सोचना गलती है। गूगल को सिर्फ और सिर्फ गांधी के आदर्शों-सिद्धांतों या उनकी महानता के प्रचार में दिलचस्पी होती तो वो बापू पर समर्पित एक वेबसाइट बना सकता था। ये साइट एक नहीं कई भाषाओं में होती ताकि दुनिया भर के लोग गांधी के विचारों को समझ पाते। किसी भारतीय संस्थान ने इस तरह का प्रयोग अभी तक नहीं किया,लेकिन गूगल के पास मौजूद असीमित संसाधन और पूंजी के लिए यह काम कठिन नहीं था। भारतीय आम चुनावों के वक्त गूगल ने सभी संसदीय क्षेत्रों से लेकर उम्मीदवारों तक की जानकारी के लिए एक समर्पित साइट बनायी थी, तो बापू के लिए यह काम मुश्किल नहीं था।

गूगल चाहता तो गांधी के नाम से कई परियोजनाएं शुरु कर सकता था,जिनका अपना महत्व होता। लेकिन,नहीं। दरअसल,गूगल ऐसा कुछ चाहता ही नहीं था। गूगल सिर्फ भारत के सबसे बड़े ब्रांड गांधी को भुनाना चाहता था,सो उसने मुफ्त में भुना लिया। सर्च इंजन के होमपेज पर गांधी की तस्वीर टांगने में न तो किसी शोध की दरकार है, और न वक्त की। लेकिन, गांधी नाम का ब्रांड गूगल को वह पब्लिसिटी दे गया, जो वो कई बड़ी घोषणाओं के जरिए भी नहीं पा पाता। फिर, देशभक्ति के तड़के में गूगल की यह पहल भी खास हो गई।

वैसे,गूगल को अब ये बात समझ आ गई है कि महान हस्तियों के नाम और तस्वीर के सहारे ही खासी पब्लिसिटी बटोरी जा सकती है,लिहाजा वो यह कवायद लगातार करने लगा है। हाल में गूगल ने महान ब्रिटिश लेखक एच जी वेल्स को छोटे ट्वीट्स और एलीअन के लोगों बनाकर याद किया था। गौरतलब है कि वेल्स साइंस फिक्शन के लिए मशहूर थे। इसके बाद चीन के महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस का जन्मदिन मनाया। अपने 11वें जन्मदिन पर गूगल ने फिर लोगो बदला। और अब बापू के जन्मदिन पर गूगल बापूमय हुआ।

दरअसल,महात्मा गांधी से लेकर वेल्स तक सभी महान हस्तियां अपने आप में ब्रांड हैं। इनके नाम पर सवार होकर पब्लिसिटी बटोरना हमेशा से आसान रहा है। गूगल अब इसी सिद्धांत के आसरे मुफ्त में पब्लिसिटी बटोर रहा है। देश के तमाम बड़े अखबारों में ‘गूगल पर गांधी’ वाली खबर के प्रकाशित होने का यही अर्थ है।

4 comments:

  1. मुझे नही लगता कि गूगल को इस तरह से दोष देना सही है. गूगल हर महत्वपूर्ण दिन को अपनी साइट का लोगो बदलकर मनाता है. अब चाहे वो वैलेंटाइन्स डे हो या क्रिसमस हो या रविन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्मदिन या गांधी जी का जन्मदिन. गूगल की यह हमेशा से परंपरा रही है. आपको एक बात बताना चाहूंगा कि उस दिन मैंने देखा था कि बापू वाला लोगो केवल google.co.in पर दिख रहा था ना कि google.com पर. क्या गूगल में इंसान नही होते हैं. अगर हम आप गांधी जी का जन्मदिन मना सकते हैं तो गूगल क्यों नही? वहां भी तो इंसान हैं. रही बात बापू के आदर्शों के पालन की तो गूगल को दोष देने से पहले हमें यह सोचना होगा कि हम उसका कितना पालन करते हैं.

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  2. अंकुर की टिपण्णी के मेरी भी समझा जाय.

    इन्टरनेट पर पिछले दस सालों में गूगल ने हर महत्वपूर्ण अवसर पर ऐसे चित्र लगाये हैं. यह उनकी स्वस्थ और रोचक परंपरा है. हर चित्र में google कैसे भी करके दिखता है.

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  3. अंकुर,
    प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद......
    मैंने सिर्फ यही सवाल उठाया कि गूगल ने गांधी का लोगो लगाया तो इसका अर्थ सिर्फ गांधी की अहमियत से लोगों को रुबरु कराना भर नहीं था। ये उसकी ब्रांडिग का भी हिस्सा है। और जहां तक गूगलइंडिया का सवाल है तो मेरी जानकारी के मुताबिक गांधी जी की तस्वीर गूगल डॉट कॉम पर भी लगाई गई। क्योंकि,कुछ अमेरिकी साइटों पर भी इसकी चर्चा हुई है।

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  4. पीयूष, यदि यह ब्रांडिंग का हिस्सा हो तो भी काबिलेतारीफ है. इसी बहाने कुछ चेंज दिखता है पेज पर, भारतीय इसे देखकर मुग्ध हो जाते हैं, गौरव की भावना जागती है, आप जैसे लोग पोस्ट लिखते हैं, हम जैसे लोग पढ़ते और कमेन्ट करते हैं. कुल मिलकर, सब क्रियेटिव मामला है:)

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