आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाइएसआर रेड्डी ब्लॉगर बन गए हैं। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को जीताने की मुहिम के तहत पार्टी ने वोटकॉन्गडॉटकॉम साइट लांच की है। इस साइट पर मुख्यमंत्री का ब्लॉग भी है। ब्लॉग इंग्लिश में है,और मुख्यमंत्री ने अभी तक जमकर तेलुगुदेशम पार्टी पर निशाना साधा है। लेकिन,सवाल ब्लॉग के कंटेंट का नहीं,लांचिंग के वक्त का है। रेड्डी साहब की पहली पोस्ट की तारीख बीस मार्च दर्ज है। आखिर,अचानक वाइएसआर को क्या लगा कि वो ब्लॉगर हो लिए? उन्होंने ब्लॉग लिखना उस वक्त शुरु किया है, जब विधानसभा चुनाव में एक महीने से भी कम वक्त रह गया है।
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम ने भी इसी 18 मार्च को चुनाव के लिए अपनी खास वेबसाइट लांच की है-वोटसीपीआईएमडॉटओआरजी। लोकसभा चुनाव के लिए मतदान के पहले चरण में एक महीने से भी कम वक्त रह गया है,तब पार्टी को साइबर कैंपेन के जरिए युवाओं को आकर्षित करने की योजना याद आई। कांग्रेस के भी अपनी पार्टी साइट का 'लुक-फील' बदलने की चर्चा है। शाहनवाज हुसैन और मुरली मनोहर जोशी जैसे कई राजनेताओं ने भी हाल में अपनी निजी वेबसाइट और ब्लॉग लांच किए हैं।
दरअसल,सवाल यही है कि साइबर कैंपेन अचानक क्यों? पार्टियां अगर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साइबर कैंपेन से उत्साहित हैं,तो उन्हें ये भी पता होना चाहिए कि ओबामा ने अपनी साइट 2004 में रजिस्टर्ड करा ली थी। वो 2007 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने तो एक पखवाड़े के भीतर उनकी कैंपेन साइट 'बराकओबामाडॉटकॉम' पूरी तरह तैयार थी। लेकिन, हमारे यहां राजनेता उस वक्त साइबर कैंपेन को तरजीह दे रहे हैं,जब मतदान में चंद दिन ही बाकी रह गए हैं। जानकारों के मुताबिक,साइट अथवा ब्लॉग के प्रचार का सबसे बड़ा जरिया सर्च इंजन हैं,लेकिन सर्च इंजन में उन्हें कायदे से रजिस्टर होने में ही दो-तीन महीने लग जाते हैं। सीपीएम की नयी साइट का ही उदाहरण लें। गूगल सर्चइंजन पर की वर्ड 'सीपीएम वेबसाइट' सर्च करने पर पार्टी की नयी साइट पहले बीस नतीजों में नहीं आती।
इस जल्दबाजी में साइट या ब्लॉग पर उन जरुरी सावधानियों की तरफ भी ध्यान नहीं दिया गया,जो पाठकों को बांध सकती हैं। मसलन रेड्डी के ब्लॉग पर न पोस्ट को सब्सक्राइब करने की सुविधा नहीं है। यानी पाठक को रेड्डी साहब का ब्लॉग पढ़ना है तो हर रोज़ ब्लॉग पर आकर देखना होगा कि क्या रेड्डी साहब ने कुछ नया लिखा है। सीपीएम की साइट पर डोनेशन का लिंक है,लेकिन यहां चंदा चेक और ड्राफ्ट से मांगा जा रहा है। मुमकिन है कि ये कदम योजनागत हो लेकिन सवाल ये कि क्या वर्चुअल दुनिया के दानदाता चेक-ड्राफ्ट से भुगतान करेंगे? शाहनवाज हुसैन की साइट पर ब्लॉग का लिंक है, जो अभी तक सक्रिय नहीं हो पाया है। इस कड़ी में लालकृष्ण आडवाणी के साइबर कैंपेन को नहीं रखा जा सकता,क्योंकि इस कैंपेन का बजट करोड़ों में है। लेकिन, साइबर कैंपेन के जरिए सफलता खोज रहे बाकी नेता जल्दबाजी में उस लाभ से भी वंचित हैं,जो उन्हें मिलना चाहिए। इसका सीधा अर्थ ये है कि साइबर दुनिया में नेता लड़ाई कितनी भी लड़े-जीत किसी की नहीं होनी है।
यूट्यूब कैंपेन क्यों नहीं?वीडियो शेयरिंग साइट यूट्यूब पर 'मनमोहन सिंह' सर्च करते वक्त अचानक एक वीडियो "नाना पाटेकर-प्रधानमंत्री की फोन बातचीत" आपकी आंखों के सामने से गुजरता है,तो आप देखे बिना नहीं रह पाते। लेकिन,इस क्लिप को चलाते ही आपको समझ आता है कि ये किसी शरारती शख्स की करतूत है। फिर,जेहन में ये सवाल भी आता है कि अभी तक किसी ने(कांग्रेसियों समेत) इस क्लिप के खिलाफ शिकायत क्यों नहीं दर्ज करायी? इस क्लिप में कोई टेलीफोन बातचीत नहीं,बल्कि फर्जी मनगढंत ओछी मिमिक्री है।
इस तरह के मामलों को छोड़ दें तो यूट्यूब पर कई दिलचस्प वीडियो देखने को मिलते हैं। इनमें तेलुगु भाषा में कई राजनीतिक एनिमेशन हैं,जिनमें नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी अपनी अपनी धुनों पर थिरकते दिखते हैं। एक वीडियो में राहुल गांधी के आईक्यू पर सवाल उठाया गया है। अब,अगर इस क्लिप के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है,तो राहुल का गुजरात को यूनाइटेड किंगडम और भारत को अमेरिका व यूनाइटेड किंगडम से बड़ा बताने की बाइट चौंकाती जरुर है।
यूट्यूब पर लालकृष्ण आडवाणी का अलग चैनल है,तो राहुल गांधी के एक प्रशसंक ने 'राहुलगांधीडॉटटीवी' खोल रखा है,जिस पर उनसे जुड़े कई वीडियो हैं। लेकिन,यूट्यूब पर राहुल गांधी,लाल कृष्ण आडवाणी,मनमोहन सिंह,मायावती,राजनाथ सिंह,देवगौड़ा सर्च करने पर एक बात साफ हो जाती है कि चुनावी मौसम में इस माध्यम का इस्तेमाल सिर्फ चलताऊ वीडियो अपलोड करने के लिए किया जा रहा है। युवाओं का पसंदीदा माध्यम यूट्यूब एक अलग किस्म के कैंपेन की मांग करता है,जहां रैलियों,उबाऊ भाषणों,प्रेस कॉन्फ्रेंस और न्यूज चैनलों के पैकेज से इतर दिलचस्प तरीके से बात कही गई हो,लेकिन फिलहाल यहां ऐसा नहीं दिखता।
छोटे खिलाड़ी भी मैदान में : वाइएसआर रेड्डी,मुरली मनोहर जोशी,लालकृष्ण आडवाणी और संजय निरुपम जैसे दिग्गज ब्लॉगरों की देखा-देखी ब्लॉगिंग के खेल में छोटे राजनीतिक खिलाड़ी भी उतर आए हैं। आरा से बीएसपी उम्मीदवार रीता सिंह ने 'रीतासिंहबीएपीडॉटब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम' शुरु किया है। बहनजी की तस्वीरों से पटे पड़े इस ब्लॉग पर रीता के भाषणों को पोस्ट में डाला गया है।मतलब रीता जी के पास खुद वक्त नहीं है लिखने का। ब्लॉग पर उनकी सभाओं और रैलियों की सूचना है ताकि वहां भारी भीड़ जुट सके। ये अलग बात है कि हर पोस्ट पर 'शून्य और एक' कमेंट बताता है कि ब्लॉग पर अभी भीड़ नहीं जुट रही।
एक एसएमएस :
संटी(बंटी से)-अगर ओबामा नहीं होते तो क्या होता?
बंटी(संटी से)-क्या होता,आडवाणी जी और उनकी पार्टी के करोड़ों रुपए फूंकने से बच जाते।
(दैनिक भास्कर में प्रकाशित पोल-टेक स्तंभ, 26 मार्च को प्रकाशित )
It begins with self
6 days ago
Bhai Acchha likhte ho, Lage raho. Hamari shubhkaamnaayen aapke saath hain.
ReplyDeleteबहुत अच्छा... इतनी सुंदर जानकारी देने के लिए धन्यवाद। चुनाव प्रचार भी तकनीकी हो चला है। लेकिन जरूरत इस बात की है कि यही नेता चुनाव जीतने के बाद अपने किए वादों को पूरा करें।
ReplyDeleteब्लोगिंग जगत में स्वागत है
ReplyDeleteलगातार लिखते रहने के लिए शुभकामनाएं
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