इन दिनों तकरीबन हर वेबसाइट पर बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी की साइट का विज्ञापन चस्पां है। समाचार, खेल, ज्योतिष, प्रॉपर्टी जैसी तमाम अलग विषयों की साइटों से लेकर पाकिस्तानी अखबार डॉन और ब्रिटिश अखबार गार्जियन की वेबसाइट पर भी उनकी साइट का विज्ञापन दिख रहा है। बीजेपी ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि इस साइबर कैंपेन का बजट कितना है, लेकिन जानकारों का मानना है कि पूरे कैंपेन में 100 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए हैं। वजह-विज्ञापन हजारों साइटों पर दिख रहा है। गूगल के जरिए दिए गए इन विज्ञापनों को उन साइटों पर भी दिया गया है,जिनका राजनीतिक खबरों से दूर दूर तक वास्ता नहीं है। जानकारों की मानें तो इस तरह विज्ञापन देने में बीजेपी को सामान्य विज्ञापनों से तिगुना खर्च करना पड़ा होगा। लेकिन, बात सिर्फ साइबर कैंपेन के तहत साइट के धुआंधार विज्ञापनों की नहीं है। ओबामा की तर्ज पर साइबर कैंपेन करने उतरे आडवाणी जी सोशल नेटवर्किंग साइट पर खास सक्रिय नहीं है। फेसबुक और ऑर्कुट जैसी साइटों पर उनके समर्थकों की संख्या महज 1000 के आसपास है,जबकि फेसबुक पर ओबामा के समर्थकों की तादाद सात लाख से ज्यादा थी। आडवाणी जी का हिन्दी ब्लॉग बिलकुल उपेक्षित है। हिन्दी में लिखी पोस्ट पर कमेंट इक्का दुक्का हैं,और इसका अलग से कोई खास प्रचार नहीं दिखता। यू ट्यूब पर ज्यादातर वीडियो रैलियों और भाषणों से जुड़े हैं। बताया गया है कि साइट के जरिए 6000 स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं,जबकि साइट पर बने फोरम के 7000 से ज्यादा सदस्य हैं। साइट को एक लाख पेज व्यू भी रोज़ाना मिल रहे हैं। बावजूद इसके, सवाल यही है कि देश के नौजवानों को केंद्रित कर शुरु किए गए इस साइबर कैंपेन से क्या वोट हासिल किए जा सकते हैं ? देश में कुल युवा मतदाताओं की संख्या करीब 21 करोड़ है,जबकि भारत में नेट उपयोक्ता अभी आठ करोड़ के आसपास हैं। इनमें सक्रिय नेट उपयोक्ताओं की तादाद लगभग आधी है। इनमें बड़ी तादाद 18 साल से कम उम्र के बच्चों की है। सूचना तकनीक उद्योग से जुड़े युवा अमूमन अपने गृह प्रदेश से दूर रह रहे हैं। फिर,साइबर कैंपेन भर से युवाओं का वोट अपने पक्ष में करना क्या आसान है ? जानकारों की मानें तो साइबर कैंपेन के जरिए पार्टी सिर्फ आडवाणी जी की ब्रांडिंग कर रही है। 81 साल की उम्र में भी आडवाणी ऐसे युवा नेता के रुप में अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं, जो उनके अंदाज,उनकी भाषा और उनकी जरुरत समझता है। साइबर कैंपेन के जरिए उनकी जबरदस्त ब्रांडिंग हो रही है,इसमें दो राय नहीं। लेकिन, युवाओं को लुभाने के चक्कर में आडवाणी जी का ये दांव कहीं उल्टा न पड़ जाए क्योंकि हर साइट पर आडवाणी जी का फोटू देखकर नयी पीढ़ी कहीं बिदक न जाएं। आखिर, अति सबकी बुरी होती है जी !
हमऊं करयें साइबर कैंपेन :
साइबर कैंपेन के दौर में समाजवादी पार्टी कैसे पीछे रहती। इंटरनेट पर पार्टी की अधिकारिक वेबसाइट के रुप में दर्ज है-समाजवादीपार्टीइंडियाडॉटकॉम। वेबसाइट पर पार्टी के नाम के नीचे लिखा है-वेलकम टू ऑफिशियल साइट ऑफ समाजवादी पार्टी। साइट पर लिखा है- “समय बदलता है, तकनीक बदलती है। समाजवादी पार्टी बदलती तकनीक के साथ कदमताल करने में यकीन करती है। “ अब,पार्टी ने साइट तो बना दी,लेकिन इस साइट के जरिए साइबर कैंपेन मुमकिन नहीं दिखता। साइट का लुक-फील बेहद साधारण है। साइट पर ब्लॉग का लिंक है, लेकिन इस साल इस ब्लॉग पर एक भी पोस्ट नहीं लिखी गई। फिर,ब्लॉग पर जाने के बाद मुख्य साइट पर जाने का कोई लिंक नहीं है। समाजवादी पार्टी की जड़े उत्तर प्रदेश में हैं,लेकिन साइट की भाषा हिन्दी नहीं अंग्रेजी है। पार्टी के समर्थक अंग्रेजी भाषी कब से हो गए-ये अपने आप में सवाल है। मज़ेदार बात ये कि इस वेबसाइट पर पार्टी शादी के उत्सुक नौजवानों का ध्यान भी रख रही है, और जमीन-जायदाद खरीदने के इच्छुक लोगों का भी। यानी वैवाहिक साइट का विज्ञापन भी यहां है और प्रॉपटी की खरीद-बिक्री से जुड़ा विज्ञापन भी। साइट पर ‘डोनेशन’ का कोई लिंक नहीं है,अलबत्ता इन विज्ञापनों से पार्टी को कितनी कमाई होगी-ये देखने वाली बात है।
चुनाव में गूगल की बल्ले बल्ले :
चुनाव में कोई जीते-कोई हारे,गूगल की बल्ले बल्ले है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव के दौरान बराक ओबामा ने अपनी ऑनलाइन एडवरटाइजिंग का 82 फीसदी गूगल विज्ञापनों पर खर्च किया। साल 2008 के पहले चार महीनों में ये रकम 30 लाख डॉलर से ज्यादा थी। इसी तरह, विपक्षी जॉन मैक्गेन ने भी गूगल विज्ञापन पर लाखों डॉलर खर्च किए। अब,भारत में चुनाव के दौरान गूगल को 100 करोड़ रुपए से ज्यादा आय होने की संभावना जताई जा रही है। आडवाणी के महा साइबर कैंपेन के अलावा छोटी छोटी तमाम पार्टियां अपने अपने स्तर पर प्रचार कर रही हैं। ऐसे में,गूगल को बैठे बैठाए करोड़ों रुपए की आय हो रही है। जानकारों के मुताबिक अगर साइबर कैंपेन का फंडा हिट रहा तो विधानसभा चुनावों और स्थानीय चुनावों के दौरान भी गूगल को विज्ञापन मिलना तय है।
एक एसएमएस:
आडवाणी के साइबर कैंपेन से परेशान दूसरी राजनीतिक पार्टियों का बीजेपी को एक छोटा एसएमएस ज्ञापन -“जनाब,आडवाणी जी की साइट का विज्ञापन डॉन,गार्जियन,वाशिंगटन पोस्ट के अलावा अब हमारी पार्टियों की साइट पर भी आने लगा है। राजनीतिक सद्भावना के तहत इन विज्ञापनों को कम से कम हमारी पार्टियों की साइट से तो हटवा लीजिए....। हम लोग आपके आभारी रहेंगे ”
(दैनिक भास्कर में प्रकाशित 'पोल टेक' स्तंभ)
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6 days ago
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