Thursday, August 13, 2009

बॉलीवुड को लुभा गई सोशल मीडिया की दुनिया

सोशल मीडिया की दुनिया में ऐसा क्या आकर्षण है कि यहां बॉलीवुड सितारों का मेला लगने लगा है? हिन्दी सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर खुद को साबित करने में जुटे रीतेश देशमुख तक यहां अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं ? क्या इस नयी दुनिया के रुप में उन्हें ‘अलादीन का चिराग’ मिल गया है, जो फिल्म हिट कराने से लेकर अपनी अलग पहचान गढ़ने में मदद कर रहा है या वजह कुछ और हैं ? सवाल कई हैं, जो अब सोशल मीडिया में बॉलीवुड कलाकारों की बढ़ती दिलचस्पी के बीच पूछे जा रहे हैं।

इन सवालों का जवाब टटोलने से पहले बॉलीवुड कलाकारों की सोशल मीडिया में बढ़ते दखल की बानगी देखिए। साल 2004 में प्रकाश झा ने फिल्म ‘अपहरण’ के प्रचार के लिए कलाकारों से जमकर ब्लॉगिंग कराई थी। अजय देवगन, बिपाशा बसु, मोहन आगाशे और खुद प्रकाश झा ने फिल्म से जुड़े अपने अनुभवों पर ब्लॉगिंग की। लेकिन, उस वक्त फिल्म की सफलता के बावजूद इस प्रयोग की ओर ज्यादा ध्यान नहीं गया था।

लेकिन, अप्रैल-2008 में अचानक बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने अपना ब्लॉग शुरु कर एक हवा को आंधी में बदल दिया। व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद अमिताभ बच्चन की ब्लॉगिंग को शुरुआत में ‘चार दिनों का शौक’ करार दिया गया, लेकिन उन्होंने इस आशंका को गलत साबित कर दिया। अमिताभ बच्चन ने ऐश्वर्या के मांगलिक होने से लेकर विमान यात्राओं में अपना सामान खोने तक कई निजी मसलों पर लिखा। इसके अलावा कई बार मीडिया पर भी अपनी भड़ास निकाली। अमिताभ से पहले, आमिर खान 2007 से ही ब्लॉगिंग कर रहे थे। इसके अलावा करण जौहर, रामगोपाल वर्मा और शेखर कपूर जैसे निर्देशक भी पुराने ब्लॉगर हैं, लेकिन अमिताभ के ब्लॉग को मिली लोकप्रियता ने सभी को पीछे छोड़ दिया। इसके बाद तो सलमान खान, शाहरुख खान, मनोज बाजपेयी, शिल्पा शेट्टी, पायल रोहतगी, अभय देओल जैसे कई सितारों ने ब्लॉगिंग में हाथ आजमाया। हाल में राहुल बोस ने एक बार फिर ब्लॉगिंग शुरु की है।

ब्लॉग पर पोस्ट लिखने के साथ इन दिनों बॉलीवुड कलाकारों पर माइक्रोब्लॉगिंग साइट ‘twitter’ का भूत सवार है। 140 अक्षरों की पोस्ट वाली यह सेवा खासी लोकप्रिय हो रही है। प्रियंका चोपड़ा के twitter खाते से करीब 28,000 प्रशंसक जुड़ चुके हैं। उदय चोपड़ा, करण जौहर, गुल पनाग,रीतेश देशमुख जैसे कई नाम हैं,जो twitter के दीवाने हैं। इस सूची में रोज बड़े नाम जुड़ रहे हैं। इसी तरह, सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ और ‘ऑर्कुट’ पर तमाम सितारे मौजूद हैं।

सोशल मीडिया के रुप में बॉलीवुड कलाकारों को एक अनूठा हथियार मिल गया है। इस हथियार से एक साथ कई निशाने साधे जा सकते हैं। मसलन-बॉलीवुड कलाकारों को अपनी फिल्म की पब्लिसिटी का एक और जरिया मिल गया है। हज़ारों की तादाद में जुड़े प्रशंसकों से सीधे फिल्म देखने की भावनात्मक अपील भले फिल्म को हिट न कराए लेकिन उत्सुकता तो जगाती ही हैं। फिर, इसी हथियार से विरोधियों को चित किया जा सकता है। अमिताभ बच्चन अक्सर ब्लॉग पर मीडिया को आड़े हाथों लेते रहे हैं, तो मनोज बाजपेयी एक बार राम गोपाल वर्मा से दो-दो हाथ कर चुके हैं। आमिर खान ने अपने कुत्ते का नाम शाहरुख पर होने की बात लिखकर संभवत: अपनी भड़ास निकाली थी। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि सोशल मीडिया की पहुंच लगातार व्यापक हो रही है। प्रकाश झा की पिछली फिल्मों की सोशल नेटवर्किंग साइट ‘ऑर्कुट’ पर बनी कम्यूनिटी के सदस्यों की संख्या से इस बात को और बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। ‘गंगाजल’ के वक्त जहां अजय देवगन के नाम बनी 110 कम्यूनिटी में कुल सदस्यों की संख्या करीब 15 हजार थी, वहीं ‘राजनीति’ के रिलीज होने से पहले ही सिर्फ रणबीर कपूर के नाम पर 532 कम्यूनिटी हैं,जिनकी सदस्य संख्या दो लाख से ज्यादा है। कैटरीना कैफ के नाम पर तो 1000 से ज्यादा कम्यूनिटी हैं, जिनकी सदस्य संख्या पांच लाख से ज्यादा है।

भारत में ‘फेसबुक’ इस्मेमाल करने वालों की तादाद चंद महीनों में 25 लाख पार कर गई है। ‘आर्कुट’ के भी लाखों सदस्य हैं। जबकि ट्विटर के उपभोक्ताओं के बढ़ने की रफ्तार हजार गुना से ज्यादा है। ट्विटर के संदेशों को मोबाइल फोन के जरिए भी भेजा और प्राप्त किया जा सकता है, लिहाजा इसके मुरीद सभी हैं। फिर, इस नए माध्यम में मुख्यधारा की मीडिया की कोई दखलंदाजी नहीं है यानी बयान तोड़मरोड़कर पेश करने जैसी कोई बात नहीं है। इसके अलावा, विदेशों में बैठे दर्शकों के बीच फिल्म की पब्लिसिटी का यह शानदार माध्यम है।

निर्माता-निर्देशक भी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं,लिहाजा फिल्म के प्रमोशन की रणनीति सोशल मीडिया के इर्दगिर्द बुने जाने की शुरुआत हो गई है। हाल में प्रदर्शित हुई फिल्में ‘कम्बख्त ईश्क’ और ‘लव आज कल’ के प्रचार के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ पर फिल्म पर आधारित ग्रुप बनाए गए। इन ग्रुप के सदस्यों के बीच कभी फिल्म की ताजा तस्वीरें जारी की गईं तो कभी इम्तियाज अली जैसे निर्देशक ने खुद नियमित तौर पर ‘चैट’ की। कमीने, काइट्स और सिकंदर जैसी कई आगामी फिल्मों का प्रमोशन इस तर्ज पर हो रहा है।

निश्चित तौर पर, आठ करोड़ से ज्यादा इंटरनेट और करीब 40 करोड़ मोबाइल धारकों के इस नए समाज में एक तरफ जहां बॉलीवुड को प्रचार का बेहतरीन जरिया मिला है, वहीं दूसरी तरफ, बॉलीवुड कलाकारों को एयरकंडीशन कमरे और गाड़ियों में बैठे बैठे सीधे प्रशंसकों से जुड़ाव का। लेकिन, सचाई यही है कि हाई-फाई लैपटॉप और मोबाइल के जरिए ज्यादातर कलाकार या तो अपनी फिल्म का प्रचार कर रहे हैं या खुद को एक मजबूत ब्रांड के रुप में स्थापित करने की कोशिश । कलाकारों के ब्लॉग-ट्विटर या सोशल नेटवर्किंग साइट्स के इस्तेमाल की खबर मुख्यधारा के मीडिया में सुर्खियां बटोर रही हैं। यही वजह है कि शाहरुख, सलमान, माधवन, अभय देओल और फरहान अख्तर जैसी कई हस्तियों ने सिर्फ अपना उल्लू सीधा होने तक यह खेल खेला। सलमान रिएलिटी शो ‘दस का दम’ को हिट कराने के लिए ब्लॉगिंग करते दिखे, तो शाहरुख आईपीएल में नाइट राइडर्स के प्रचार के इरादे से। अभय ने ‘ओए लक्की ओए’ के दौरान एक पोस्ट भर लिखी। हां, शेखर कपूर, मनोज बाजपेयी, आमिर खान जैसे अपवादों को छोड़ दें, जिन्होंने देश-दुनिया के हाल को भी अपनी सोच के दायरे में रखा तो बाकी कलाकार इस सोशल मीडिया के सोशल पहलू को भुलाते दिखे हैं। कहीं अहंकार हावी है, कहीं आत्ममुग्धता। इस बीच, देशी सेलेब्रिटियों के बीच ट्विटर का झंडा बुलंद करने वाली अभिनेत्री गुल पनाग का रक्त दान से संबंधित मैसेज (ट्वीट) दिखता है, तो सुखद हैरानी होती है। निश्चित तौर पर बॉलीवुड कलाकारों के हाथों में आए सोशल मीडिया के नए औजार न केवल औरों से कहीं ज्यादा प्रभावी हो सकते हैं, बल्कि कई सार्थक पहल कर सकते हैं। बशर्ते वो इस दिशा में सोचें।

(दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 13 अगस्त को प्रकाशित आलेख)

Sunday, August 2, 2009

ग़ज़ब नौटंकी का आखिरी भाषण, इलेश के गले में राखी की वरमाला

स्वयंवर से पहले राखी (नौटंकी)सावंत का आखिरी भाषण-

"जिन्होंने मुझे इस दुनिया में एक जगह दी। मैं उन्हें आज इस पल कैसे भूल जाऊं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इस तरह से स्वंयर रचूंगी। इतिहास रचूंगी टेलीविजन पर। कभी नहीं सोचा था। हमेशा ईश्वर मेरे आगे रहे । मैं पीछे रही। मेरे कुछ फ्रेंड यहां आए हैं। पहले उनके साथ मैं प्रार्थना करना चाहूंगी। फिर कोई फैसला लूंगी। जो लोग देख रहे हैं, वो भी मेरे लिए प्रार्थना करें। मुझे उनकी ब्लेसिंग चाहिए। मैंने बहुत दुख उठाए हैं लेकिन आज के बाद कभी दुख नहीं उठाऊंगी। मैं और मेरी फ्रेंड्स प्रेयर करेंगे मेरे लिए। ग्रूम के लिए। ससुराल के लिए और एनडीटीवी इमेजिन के लिए। जीसस, मैं आपको साक्षी मानकर प्रे करना चाहूंगी। आपके नाम से मैं हर चीज करती हूं। दगी में आप सबसे पहले मेरे साथ हैं। ईश्वर मैं आपको बुलाती हूं। अपने हदय में, अपने शरीर में। मैंने कदम कदम पर ठोकर खाई। आज इतना पवित्र दिन है। आज यीशू मैं चाहतीं हूं आप जमीन पर आइए और मेरे लिए फैसला लीजिए।

एक छोटा सा गाना है, मैं गाती हूं।

आराधना करुंगी मैं पूरे मन से.......
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थैक्यू लॉर्ड
थैक्यू जीसस
आईलवयू गॉड

इससे पहले मैं कोई फैसला लूं। मैं कुछ कहना चाहती हूं। आप तीनों मेरे फेवरेट हैं। मैंने कभी नहीं चाहा था कि मैं किसी का दिल तोडू। और बहुत सॉरी कि मैं किसी दो को सिलेक्ट नहीं कर पाई। अंजाने में मैं किसी का दिल तोड़ू रही हूं तो मुझे माफ करना।

खैर,राखी-राखी के नारों के बीच आखिरी टीआरपी नौटंकी हुई। राखी कभी एक के सामने खड़े होकर ठहरी तो कभी कहा कि मैं अब स्वंयर पार्ट टू करना चाहती हूं। लेकिन, आखिर में दूल्हा बने कनाडा के बिजनेसमैन इलेश।

लेकिन,ठहरिए...असली पेंच यही था। राखी ने आखिर में ऐलान कर दिया कि अभी सगाई हुई है,स्वंयर का मतलब होता है वर चुनना। शादी हम बाद में कर लेंगे। यानी हुई गुगली।

टीआरपी नौटंकी खत्म हुई। अब,देखें एनडीटीवी इमेजिन टीआरपी की जंग में बने रहने के लिए कौन सी अगली नौटंकी लेकर आता है।

Saturday, August 1, 2009

गूगल को पछाड़ना आसान नहीं

बिल गेट्स की कंपनी माइक्रोसॉफ्ट आखिरकार अपने इरादे में कामयाब हो गई। ये अलग बात है कि याहू कॉर्प को खरीदने को उसका मंसूबा सफल नहीं हुआ, लेकिन इंटरनेट सर्च और ऑनलाइन विज्ञापन में गूगल की बढ़त के खौफ में दोनों कंपनियों ने हाथ मिला लिए। पिछले साल माइक्रोसॉफ्ट ने याहू को 47.5 अरब डॉलर में खरीदने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन बात नहीं बनी। लेकिन, इस सौदे के खटाई में पड़ने के एक साल के भीतर ही दोनों कंपनियां सर्च इंजन को लेकर एक हो गईं, तो यह जानना दिलचस्प है कि ऐसा क्यों हुआ?

इंटरनेट पर सर्च इंजन के मामले में गूगल का कोई सानी नहीं है। सर्च इंजन पर अमेरिकी खोजों के मामले में गूगल की हिस्सेदारी 78 फीसदी है,जबकि याहू के पास 11 फीसदी और माइक्रोसॉफ्ट के पास महज 8.4 फीसदी हिस्सा है। अमेरिका में सर्च इंजन पर को मिलने वाले विज्ञापनों में भी गूगल के पास 75 फीसदी हिस्सा है,जबकि याहू के पास 20.5 फीसदी और माइक्रोसॉफ्ट के पास 4.5 फीसदी हिस्सा है। ऑनलाइन विज्ञापनों के मामले में गूगल की बढ़त एकाधिकार जैसे हालात बना देती है,और माइक्रोसॉफ्ट के लिए यह चिंता का विषय थी।

लेकिन,बात सिर्फ माइक्रोसॉफ्ट की नहीं है। याहू की भी हालत खस्ता थी। एमएसएन के जरिए सर्च इंजन के क्षेत्र में माइक्रोसॉफ्ट अरसे से अपनी मौजूदगी दर्ज कराए हुए है, लेकिन उसकी बाजार हिस्सेदारी लगातार घटती गई। दूसरी तरफ, याहू का बिजनेस मॉडल ही बहुत हद तक सर्च इंजन की हिस्सेदारी पर निर्भर है,लिहाजा गूगल की बढ़ती हिस्सेदारी उसकी परेशानी का भी सबब थी।

लेकिन,बात सिर्फ सर्च इंजन में गूगल की बढ़त का भी नहीं है। गूगल ने हाल में माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ नयी जंग का ऐलान करते हुए ‘ऑपरेटिंग सिस्टम’ बाजार में उतारने का फैसला किया है। इसका सीधा अर्थ यह है कि माइक्रोसॉफ्ट को पहली बार उस क्षेत्र में चुनौती मिलेगी, जिस पर अभी तक उसका लगभग कब्जा रहा है। गूगल की ई-मेल सेवा ‘जी-मेल’ पहले ही माइक्रोसॉफ्ट की ई-मेल सेवा हॉटमेल को जोरदार पटखनी दे चुकी है। गूगल की ब्लॉगसेवा ब्लॉगस्पॉट भी माइक्रोसॉफ्ट भी ब्लॉग सर्विस पर इक्कीस साबित हुई है। गूगल का मैसेजिंग सॉफ्टवेयर गूगल टॉक माइक्रोसॉफ्ट के एमएसएन को कड़ी चुनौती दे चुका है। करीब ढ़ाई साल पहले लाए गूगल के डेस्कटॉप सर्च सॉफ्टवेयर ने भी माइक्रोसॉफ्ट की नींदें पहले ही उड़ा रखी हैं।

लेकिन,लाख टके का सवाल यह है कि क्या माइक्रोसॉफ्ट और याहू के बीच हुए इस समझौते के बाद गूगल का एकाधिकार खत्म हो पाएगा? इस सवाल का जवाब तलाशने से पहले इस समझौते की अहम बात समझ ली जाए। वो यह कि इस समझौते के अमल में आने के बाद (संभवत: 2010 तक) माइक्रोसॉफ्ट पांच साल तक सर्च के जरिए होने वाली आमदनी का 88 फीसदी याहू को देगा। यह करार दस साल के लिए है और इस दौरान याहू की सभी साइट्स पर सर्च इंजन का विकल्प माइक्रोसॉफ्ट मुहैया कराएगी। माइक्रोसॉफ्ट के नये सर्च इंजन ‘बिंग’ को हर जगह इसका श्रेय दिया जाएगा। यानी अचानक करीब 28 फीसदी सर्च पर माइक्रोसॉफ्ट का कब्जा हो जाएगा। इसके जरिए, वो ऑनलाइन विज्ञापन प्रदाता कंपनियों को तो आकर्षित कर ही पाएगी, अपने प्रोडक्ट का भी बेहतर प्रचार कर पाएगी। माइक्रोसॉफ्ट और याहू का कहना है कि इस समझौते के बाद दोनों कंपनियां इंटरनेट सर्च को बेहतर बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकेंगे। हालांकि, गूगल ने इस समझौते पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इससे प्रतिस्पर्धा घटेगी। बाजार में तीन के बजाय दो खिलाडी रहने के बाद प्रतिस्पर्धा की भावना कम होगी, लिहाजा नए शोध नहीं होंगे और उपभोक्ताओं के विकल्प भी कम होंगे।

इसमें कोई शक नहीं है कि गूगल के सामने लगातार बेबस हो रही माइक्रोसॉफ्ट के लिए यह सौदा संजीवनी बूटी साबित हो सकता है। इस बात का पहला प्रमाण सौदे की घोषणा के साथ दिखा, जब माइक्रोसॉफ्ट के शेयरों में तो .72 फीसदी उछाल दिखा अलबत्ता याहू कॉर्प के शेयर 12 फीसदी से ज्यादा गिर गए। आशंका इस बात की है कि सौदे के अमल में आने तक याहू के कई निवेशक अपने शेयर बेचकर निकल सकते हैं।

दरअसल, इस सौदे के बाद माइक्रोसॉफ्ट बनाम गूगल की जंग नए रुप में सामने आएगी। ऑपरेटिंग सिस्टम के मामले में माइक्रोसॉफ्ट इसी साल विंडोस-7 लाने की तैयारी कर चुका है, जबकि सर्च इंजन के क्षेत्र में अब वो छोटी ही सही चुनौती देने की स्थिति में तो होगा। हालांकि,सर्च इंजन के मामले में गूगल को हराना अभी दूर की कौड़ी है,जबकि उसके आसपास फटकना भी आसान नहीं है। इसकी वजह हैं। पहली, गूगल ने इंटरनेट सर्च में अपना जो रुतबा बनाया है,वो सिर्फ किसी नए खिलाड़ी या दो खिलाड़ियों के हाथ मिलाने से कम नहीं होता। सवाल यह है कि याहू-माइक्रोसॉफ्ट सर्च को कितना प्रभावी बनाते हैं, और विज्ञापनदाताओं को कैसे लुभाते हैं। दूसरी वजह- ‘पे फॉर परफॉरमेंस’ का गूगल का फंडा छोटे कारोबारियों को लुभा चुका है। तीसरा, गूगल को मालूम है कि उसकी सबसे बड़ी ताकत सर्च इंजन ही है, लिहाजा माइक्रोसॉफ्ट के ‘बिंग’ की चुनौती से निपटने की उसकी अपनी रणनीति होगी। फिर, अभी तो सौदा अमल में आने में ही वक्त है यानी गूगल के पास तैयारी के लिए थोड़ा वक्त है।

माइक्रोसॉफ्ट और याहू की जुगलबंदी अगर गूगल को चुनौती देने में कामयाब होते हैं, तो ये अच्छा है। विज्ञापनदाताओं को जहां ऑनलाइन विज्ञापन में जहां नया विकल्प मिलेगा, वहीं बेहतर ‘बिंग’ शायद उपभोक्ताओं को भी सर्च के नए विकल्प दे। हालांकि, भारत में गूगल का वर्चस्व बना रहेगा क्योंकि अभी यहां 92 फीसदी सर्च गूगल के जरिए होती हैं,जबकि याहू-माइक्रोसॉफ्ट सिर्फ 7 फीसदी सर्च में इस्तेमाल होते हैं। सर्च इंजन को मिलने वाले भारतीय विज्ञापनों में भी करीब 85 फीसदी गूगल के खाते में जाते हैं। लेकिन, बड़ी बात ये कि याहू-माइक्रोसॉफ्ट की रणनीति कारगर हुई तो सर्च इंजन में गूगल के एकाधिकार का खौफ कम होगा। ये अच्छा संकेत है क्योंकि गूगल का प्रभुत्व लगातार उसके दुनिया की सबसे बड़ी ‘जासूसी एजेंसी’ होने की ओर इशारा कर रहा है।

(दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित लेख)