बिल गेट्स की कंपनी माइक्रोसॉफ्ट आखिरकार अपने इरादे में कामयाब हो गई। ये अलग बात है कि याहू कॉर्प को खरीदने को उसका मंसूबा सफल नहीं हुआ, लेकिन इंटरनेट सर्च और ऑनलाइन विज्ञापन में गूगल की बढ़त के खौफ में दोनों कंपनियों ने हाथ मिला लिए। पिछले साल माइक्रोसॉफ्ट ने याहू को 47.5 अरब डॉलर में खरीदने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन बात नहीं बनी। लेकिन, इस सौदे के खटाई में पड़ने के एक साल के भीतर ही दोनों कंपनियां सर्च इंजन को लेकर एक हो गईं, तो यह जानना दिलचस्प है कि ऐसा क्यों हुआ?
इंटरनेट पर सर्च इंजन के मामले में गूगल का कोई सानी नहीं है। सर्च इंजन पर अमेरिकी खोजों के मामले में गूगल की हिस्सेदारी 78 फीसदी है,जबकि याहू के पास 11 फीसदी और माइक्रोसॉफ्ट के पास महज 8.4 फीसदी हिस्सा है। अमेरिका में सर्च इंजन पर को मिलने वाले विज्ञापनों में भी गूगल के पास 75 फीसदी हिस्सा है,जबकि याहू के पास 20.5 फीसदी और माइक्रोसॉफ्ट के पास 4.5 फीसदी हिस्सा है। ऑनलाइन विज्ञापनों के मामले में गूगल की बढ़त एकाधिकार जैसे हालात बना देती है,और माइक्रोसॉफ्ट के लिए यह चिंता का विषय थी।
लेकिन,बात सिर्फ माइक्रोसॉफ्ट की नहीं है। याहू की भी हालत खस्ता थी। एमएसएन के जरिए सर्च इंजन के क्षेत्र में माइक्रोसॉफ्ट अरसे से अपनी मौजूदगी दर्ज कराए हुए है, लेकिन उसकी बाजार हिस्सेदारी लगातार घटती गई। दूसरी तरफ, याहू का बिजनेस मॉडल ही बहुत हद तक सर्च इंजन की हिस्सेदारी पर निर्भर है,लिहाजा गूगल की बढ़ती हिस्सेदारी उसकी परेशानी का भी सबब थी।
लेकिन,बात सिर्फ सर्च इंजन में गूगल की बढ़त का भी नहीं है। गूगल ने हाल में माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ नयी जंग का ऐलान करते हुए ‘ऑपरेटिंग सिस्टम’ बाजार में उतारने का फैसला किया है। इसका सीधा अर्थ यह है कि माइक्रोसॉफ्ट को पहली बार उस क्षेत्र में चुनौती मिलेगी, जिस पर अभी तक उसका लगभग कब्जा रहा है। गूगल की ई-मेल सेवा ‘जी-मेल’ पहले ही माइक्रोसॉफ्ट की ई-मेल सेवा हॉटमेल को जोरदार पटखनी दे चुकी है। गूगल की ब्लॉगसेवा ब्लॉगस्पॉट भी माइक्रोसॉफ्ट भी ब्लॉग सर्विस पर इक्कीस साबित हुई है। गूगल का मैसेजिंग सॉफ्टवेयर गूगल टॉक माइक्रोसॉफ्ट के एमएसएन को कड़ी चुनौती दे चुका है। करीब ढ़ाई साल पहले लाए गूगल के डेस्कटॉप सर्च सॉफ्टवेयर ने भी माइक्रोसॉफ्ट की नींदें पहले ही उड़ा रखी हैं।
लेकिन,लाख टके का सवाल यह है कि क्या माइक्रोसॉफ्ट और याहू के बीच हुए इस समझौते के बाद गूगल का एकाधिकार खत्म हो पाएगा? इस सवाल का जवाब तलाशने से पहले इस समझौते की अहम बात समझ ली जाए। वो यह कि इस समझौते के अमल में आने के बाद (संभवत: 2010 तक) माइक्रोसॉफ्ट पांच साल तक सर्च के जरिए होने वाली आमदनी का 88 फीसदी याहू को देगा। यह करार दस साल के लिए है और इस दौरान याहू की सभी साइट्स पर सर्च इंजन का विकल्प माइक्रोसॉफ्ट मुहैया कराएगी। माइक्रोसॉफ्ट के नये सर्च इंजन ‘बिंग’ को हर जगह इसका श्रेय दिया जाएगा। यानी अचानक करीब 28 फीसदी सर्च पर माइक्रोसॉफ्ट का कब्जा हो जाएगा। इसके जरिए, वो ऑनलाइन विज्ञापन प्रदाता कंपनियों को तो आकर्षित कर ही पाएगी, अपने प्रोडक्ट का भी बेहतर प्रचार कर पाएगी। माइक्रोसॉफ्ट और याहू का कहना है कि इस समझौते के बाद दोनों कंपनियां इंटरनेट सर्च को बेहतर बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकेंगे। हालांकि, गूगल ने इस समझौते पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इससे प्रतिस्पर्धा घटेगी। बाजार में तीन के बजाय दो खिलाडी रहने के बाद प्रतिस्पर्धा की भावना कम होगी, लिहाजा नए शोध नहीं होंगे और उपभोक्ताओं के विकल्प भी कम होंगे।
इसमें कोई शक नहीं है कि गूगल के सामने लगातार बेबस हो रही माइक्रोसॉफ्ट के लिए यह सौदा संजीवनी बूटी साबित हो सकता है। इस बात का पहला प्रमाण सौदे की घोषणा के साथ दिखा, जब माइक्रोसॉफ्ट के शेयरों में तो .72 फीसदी उछाल दिखा अलबत्ता याहू कॉर्प के शेयर 12 फीसदी से ज्यादा गिर गए। आशंका इस बात की है कि सौदे के अमल में आने तक याहू के कई निवेशक अपने शेयर बेचकर निकल सकते हैं।
दरअसल, इस सौदे के बाद माइक्रोसॉफ्ट बनाम गूगल की जंग नए रुप में सामने आएगी। ऑपरेटिंग सिस्टम के मामले में माइक्रोसॉफ्ट इसी साल विंडोस-7 लाने की तैयारी कर चुका है, जबकि सर्च इंजन के क्षेत्र में अब वो छोटी ही सही चुनौती देने की स्थिति में तो होगा। हालांकि,सर्च इंजन के मामले में गूगल को हराना अभी दूर की कौड़ी है,जबकि उसके आसपास फटकना भी आसान नहीं है। इसकी वजह हैं। पहली, गूगल ने इंटरनेट सर्च में अपना जो रुतबा बनाया है,वो सिर्फ किसी नए खिलाड़ी या दो खिलाड़ियों के हाथ मिलाने से कम नहीं होता। सवाल यह है कि याहू-माइक्रोसॉफ्ट सर्च को कितना प्रभावी बनाते हैं, और विज्ञापनदाताओं को कैसे लुभाते हैं। दूसरी वजह- ‘पे फॉर परफॉरमेंस’ का गूगल का फंडा छोटे कारोबारियों को लुभा चुका है। तीसरा, गूगल को मालूम है कि उसकी सबसे बड़ी ताकत सर्च इंजन ही है, लिहाजा माइक्रोसॉफ्ट के ‘बिंग’ की चुनौती से निपटने की उसकी अपनी रणनीति होगी। फिर, अभी तो सौदा अमल में आने में ही वक्त है यानी गूगल के पास तैयारी के लिए थोड़ा वक्त है।
माइक्रोसॉफ्ट और याहू की जुगलबंदी अगर गूगल को चुनौती देने में कामयाब होते हैं, तो ये अच्छा है। विज्ञापनदाताओं को जहां ऑनलाइन विज्ञापन में जहां नया विकल्प मिलेगा, वहीं बेहतर ‘बिंग’ शायद उपभोक्ताओं को भी सर्च के नए विकल्प दे। हालांकि, भारत में गूगल का वर्चस्व बना रहेगा क्योंकि अभी यहां 92 फीसदी सर्च गूगल के जरिए होती हैं,जबकि याहू-माइक्रोसॉफ्ट सिर्फ 7 फीसदी सर्च में इस्तेमाल होते हैं। सर्च इंजन को मिलने वाले भारतीय विज्ञापनों में भी करीब 85 फीसदी गूगल के खाते में जाते हैं। लेकिन, बड़ी बात ये कि याहू-माइक्रोसॉफ्ट की रणनीति कारगर हुई तो सर्च इंजन में गूगल के एकाधिकार का खौफ कम होगा। ये अच्छा संकेत है क्योंकि गूगल का प्रभुत्व लगातार उसके दुनिया की सबसे बड़ी ‘जासूसी एजेंसी’ होने की ओर इशारा कर रहा है।
(दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित लेख)
It begins with self
5 days ago
बहुत अच्छा लेख है
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चाँद, बादल और शाम