
क्या हिन्दी के समाचार पत्र भाषा-वर्तनी की गलतियां बहुत ज्यादा करते हैं? ये सवाल इसलिए क्योंकि यह गलतियां लगातार अख़बारों में दिखायी देती हैं, और आप इनसे चाहकर भी नज़र नहीं चुरा सकते। राष्ट्रीय समाचार पत्रों में तमाम सावधानियों के बावजूद गलतियां दिखायी देती हैं तो अफसोस अधिक होता है।

ये बात आज इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय समाचार पत्र ‘नई दुनिया’ के 26 अक्टूबर के अंक को रोज की तरह देखा तो अचानक हेडलाइन्स में एक के बाद एक कई गलतियां दिखायी दे गईं। कहीं बदमाश को बादमाश लिखा गया, तो कहीं शिकंजा को शिंकजा। सवाल, छोटी-बड़ी गलती का नहीं है, सवाल है अशुद्धि का।

क्योंकि, जब शब्द हेडलाइन में ही गलत लिखे दिखायी देते हैं,तो पढ़ना अचानक भारी लगने लगता है। खास बात यह कि आपके सामने प्रस्तुत तीन कतरनें सरसरी निगाह से अखबार पढ़ने के दौरान ही दिखायी दे गईं। और इन समाचारों की पूरी कॉपी नहीं पढ़ी गई है। अब आप इन तीन कतरनों पर नज़र डालिए और अपने विचार बताइए.........
ऐसा कुछ 'महान' कर्म अभी तक किया नहीं है, जिसका विवरण दिया जाए। हाँ, औरेया जैसे छोटे क़स्बे में बचपन, आगरा में युवावस्था और दिल्ली में करियर की शुरुआत करने के दौरान इन्हीं तीन जगहों की धरातल से कई क़िस्सों ने जन्म लिया। वैसे, कहने को पत्रकार हूँ। अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, आजतक और सहारा समय में अपने करियर के क़रीब 12 साल गुज़ारने के बाद अब टेलीविज़न के लिए कुछ कार्यक्रम और इंटरनेट पर कुछ साइट लॉन्च करने की योजना है। पांच साल पहले पहली बार ब्लॉग पोस्ट लिखी थी, लेकिन जैसा कि होता है, हर बार ब्लॉग बने और मरे... अब लगातार लिखने का इरादा है...
वर्तनी की गलतियाँ असह्य लगती हैं, विशेषकर तब जब कोई पेशेवर लेखक या संवाददाता यह करे। ब्लॉग में चल सकती हैं, खुशी से नहीं तो दुख से।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
धन्य हुए...कोई है जो वर्तनी जांचे इनके दफ्तर में.
ReplyDeletesach me!!!!
ReplyDeleteबात तो सही है.....बर्तनी की गलतियाँ नही होनी चाहिए....
ReplyDeleteवर्तनी छोडि़ये हुजूर....तथ्य तक गलत छपे होते हैं
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