दाल की कीमतें एक-दो महीनों में 20 रुपए किलो से ज्यादा बढ़ गई हैं। निजी स्कूल सरकारी आदेश के बावजूद फीस बढ़ाने में जुटे हैं। अंबानी भाइयों ने देश के गैस भंडार को अपनी जागीर समझ रखा है। महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं रोज अखबारों में सुर्खियां बन रही हैं। इस तरह के पचासों गंभीर मसले हैं,जिन पर बहस होनी चाहिए ताकि किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जा सके। इन मसलों पर राजनीतिक दलों में एक सहमति बननी चाहिए ताकि प्रभावी तरीके से कोई कानून बन सके-उपाय खोज सकें।
लेकिन,सहमति किस मसले पर बनती है? 'सच का सामना' पर। स्टार प्लस पर प्रसारित 'सच का सामना' भारतीय संस्कृति के खिलाफ है- यह कहते हुए समाजवादी पार्टी के सांसद कमाल अख्तर ने राज्यसभा में मामला उठाया तो बीजेपी के प्रकाश जावड़ेकर समेत कई पार्टियों के नेताओं का समर्थन मिल गया।
चलिए मान लिया कि ‘सच का सामना’ के सवाल भारतीय संस्कृति के खिलाफ हैं। लेकिन, इसमें शामिल होने वाले प्रतियोगियों को क्या खींच खींचकर हॉट सीट पर बैठाया जा रहा है? पैसा बोलता है भइया। लोगों को पैसा मिले तो बीच सड़क नंगे होने को तैयार हैं, तो यहां तो सिर्फ सच बोलना है।
लेकिन,सवाल ‘सच का सामना’ का नहीं है। सवाल है सांसदों के विरोध का। क्यों इन दिनों बालिका वधू से लेकर सच का सामना जैसे टेलीविजन कार्यक्रमों पर संसद में सवाल उठाए जा रहे हैं? क्या नेशनल ब्रॉडकॉस्टिंग एसोसिएशन मर गया है, जिसका काम ही इन कार्यक्रमों के खिलाफ सुनवाई करना है।
एक सवाल ये भी क्यों सांसदों को घटिया-बेहूदा और अश्लील विज्ञापन टेलीविजन पर नज़र नहीं आते। विज्ञापन तो उन्हें बड़े टॉयिंग लगते हैं :-)
कहीं,टेलीविजन कार्यक्रमों पर सवाल उठाने का एक सिरा खुद की टीआरपी बटोरना तो नहीं है। इन दिनों हर जगह ‘सच का सामना’ का जिक्र है तो सांसद महोदय ने इसी कार्यक्रम पर सवाल उठा डाला और सुर्खियां बटोर लीं। बालिका वधू के सिलसिले में भी यही कहा जा सकता है।
वैसे,एक वजह सांसदों का डर भी हो सकता है कि कहीं आने वाले दिनों में उन पर हॉट सीट पर बैठने का दबाव न बनने लगे। कहीं क्षेत्र की जनता कह दे- पहले हॉट सीट पर बैठकर आओ, फिर देंगे वोट। हो ये भी सकता था कि ‘सच का सामना’ में किसी भी पार्टी का छुटभैया नेता हॉट सीट पर बैठ जाए और सवालों के जवाब में भद्द पिटे आलाकमान की। मसलन-
क्या कभी आपसे आपकी पार्टी के मंत्री ने किसी काम के एवज में संबंधित पक्ष से मोटी रकम बटोरने को कहा है?
क्या आप मानते हैं कि आपने अपनी पिछली पार्टी को इसलिए छोड़ा कि वो भ्रष्टाचार के गर्त में जा चुकी है?
क्या आपने कभी अपने आला नेताओं के चरित्र पर शक किया है?
क्या आपने बड़े नेताओं के इशारे पर बूथ कैप्चरिंग या फर्जी वोटिंग करायी है?
यानी इन सवालों के जवाब देकर छुटभैया नेता तो दस-बीस लाख जीतकर निकल लेगा और जवाब देने पड़ेगे बड़े नेताओं को....
खैर, ‘सच का सामना’ बकवास है,इसमें कोई शक नहीं, लेकिन भारतीय संस्कृति के खिलाफ नारा उतना ही खोखला है,जितना ज्यादातर राजनेताओं का ईमान। क्योंकि,भारतीय संस्कृति के खिलाफ किस किस चीज को अब हम स्वीकृति मिलते देख रहे हैं-ये किसी से छिपा नहीं है। और महज 50 एपिसोड के एक रिएलिटी शो से ही भारतीय संस्कृति ध्वस्त हो ली तो फिर तो हो लिया काम।
It begins with self
5 days ago
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