Saturday, July 11, 2009

‘सविताभाभी’ के बहाने एक बड़ी बहस की गुंजाइश

इंटरनेट की दुनिया की पहली पोर्न कार्टून स्टार सविताभाभी का भारत में काम तमाम हुए करीब एक महीना बीत गया है, लेकिन वर्चुअल दुनिया में हुई इस ‘हत्या’ का बवाल थम नहीं रहा है। सीधे शब्दों में कहें तो भारतीय चरित्रों पर आधारित चर्चित और लोकप्रिय पोर्न कार्टून बेवसाइट सविताभाभी डॉट कॉम पर सरकार की पाबंदी को एक करीब सवा महीना गुजर गया है,लेकिन इसके प्रशंसक अभी हारे नहीं है। इंटरनेट पर ‘सेव सविता प्रोजेक्ट’ चलाया जा रहा है,जहां इस पोर्न कार्टून चरित्र के मुरीद अपने तर्कों के साथ हाजिर हैं और इसे पुनर्जीवित करने के लिए रणनीतियों पर बहस कर रहे हैं। दूसरी तरफ, इंटरनेट पर सेंसरशिप के खिलाफ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर कई बुद्धिजीवी भी सरकार के इस कदम को गलत करार देकर उसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सविताभाभी डॉट कॉम की लोकप्रियता ने कई रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे। पाबंदी से पहले साइट को प्रतिदिन देखने वालों की तादाद 200,000 से ज्यादा थी। वेबसाइट्स के ट्रैफिक नापने वाली प्रमुख कंपनी एलेक्सा पर सविताभाभी डॉट कॉम की रैकिंग टॉप 100 में थी। साल 2008 के मार्च में लॉन्च हुई इस साइट के तीस हजार से ज्यादा सदस्य हैं,जो पाबंदी से पहले तेजी से बढ़ रहे थे। लेकिन,इसमें भी कोई शक नहीं है कि अपनी तरह की इस अनूठी वेबसाइट की लोकप्रियता के साथ इसका विरोध भी जमकर हो रहा था। इस विरोध को निर्णायक शक्ल दी बेंगलुरु के एक मामले ने। पिछले साल अगस्त में बेंगलुरु के एक 11 वर्षीय छात्र ने इस पोर्न स्ट्रिप का एक एमएमएस बनाकर अपनी अध्यापिका को भेज दिया। इस मामले के सामने आने के बाद साफ हो गया कि बच्चों के बीच भी सविताभाभी की पैठ बन चुकी है,लिहाजा कई लोगों ने सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन सरकारी एजेंसी द कंट्रोलर ऑफ सर्टिफाइंग अथॉरिटीज (सीसीए) के पास शिकायत दर्ज करायी। लेकिन,फैसला लेते-लेते सरकार को करीब आठ महीने लग गए और इस साल 3 जून को डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन्स की तरफ से सभी इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को आदेश दिया गया कि वो इस साइट को ब्लॉक कर दें।

लेकिन, सवाल ये कि क्या सविताभाभी डॉट कॉम वास्तव में पाठकों की पहुंच में नहीं है ? यह सवाल न केवल अहम है,बल्कि पोर्न कार्टून स्ट्रिप की एक वेबसाइट पर पाबंदी के फैसले से कहीं आगे बहस की गुंजाइश पैदा करता है। दरअसल, सविताभाभी डॉट कॉम को भारत सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है,लेकिन अमेरिका में रजिस्टर्ड इस साइट को धड़ल्ले से अमेरिका-यूरोप समेत कई देशों में देखा जा सकता है। भारत में भी इस साइट तक ‘प्रॉक्सी सर्वर’ के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। गूगल सर्च इंजन के जरिए लोग आसानी से इस प्रॉक्सी सर्वर तक पहुंच सकते हैं। इस साइट की लोकप्रियता अभी भी बहुत कम नहीं हुई है क्योंकि एलेक्सा डॉट कॉम में इसकी रैंकिंग अभी भी शुरुआती 1200 साइटों में है। इतना ही नहीं,पाबंदी का खुलासा होने के बाद सविताभाभी डॉट कॉम से मिलते जुलते नामों से ही करीब 100 से ज्यादा साइट तैयार हो गईं, जिन पर लगभग वही पोर्न सामग्री है।

ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि इस स्थिति में क्या पाबंदी का कोई औचित्य रह गया ?वैसे,,बात सिर्फ सविताभाभी डॉट कॉम की नहीं है। इसके प्रशंसक और विरोधी दोनों के पास अपने अपने तर्क हैं। सवाल है इंटरनेट पर पोर्न साइटों का। अमेरिका की गुड पत्रिका के एक अध्ययन के मुताबिक नेट पर मौजूद कुल साइटों की 12 फीसदी पोर्नोग्राफिक हैं। इतना ही नहीं, 266 पोर्न साइट प्रतिदिन इंटरनेट पर अपना आशियाना सजाती हैं। इंटरनेट पर भारतीय पोर्न साइट्स की संख्या भी 2000 से ज्यादा है और लगातार नयी साइट जन्म ले रही हैं।

निसंदेह दुनिया भर में पोर्न कंटेंट की जबरदस्त मांग है और पोर्न साइट्स का अपना बड़ा बाज़ार है। एशियाई मुल्कों चीन,दक्षिण कोरिया और जापान में पोर्न साइट्स की कमाई 75 बिलियन डॉलर से अधिक है। अमेरिका एशियाई मुल्कों से इस मामले में कुछ पीछे हैं,जहां इंटरनेट पोर्नोग्राफी से करीब 15 बिलियन डॉलर की कमाई होती है। भारतीय संदर्भ में सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है,लेकिन जानकारों के मुताबिक भारतीय पोर्नोग्राफी बाजार तेजी से बढ़ रहा है। इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि इंटरनेट पर साल 2006 में 75 मिलियन बार ‘सेक्स’ शब्द खोजा गया और इन उत्सुक उपभोक्ताओं में दूसरे नंबर पर भारत के लोग थे।

इस हकीकत से मुंह मोड़ना संभव नहीं है कि इंटरनेट पोर्नोग्राफी के लाखों-करोड़ों दर्शक हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि कच्ची उम्र में बच्चों पर इन साइटों का बुरा असर पड़ सकता है। इस तरह के कई मामले लगातार सामने आए हैं। लेकिन,किसी खास साइट पर पाबंदी इसका कोई हल नहीं है। आखिर,सविताभाभी डॉट कॉम पर पाबंदी ने भी इसे पब्लिसिटी ही दी। ये साइट नेट पर उपलब्ध है,लिहाजा पाठकों के लिए इस तक पहुंचने में कोई खास परेशानी भी नहीं है। चिंताजनक बात यह है कि इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी समस्या का सिर्फ एक पहलू है। इंटरनेट पर तमाम वेबसाइट्स (भारतीय भी) मसाज वगैरह का खुलेआम विज्ञापन करते हुए वैश्यावृत्ति को बढ़ावा दे रही हैं। कई अश्लील साइटों पर ‘इंडियन ब्यूटी’ के गुणगान के बीच दावा किया जा रहा है ‘दिल्ली-चेन्नई और जालंधर की लड़कियों के प्रामाणिक वीडियो’उपलब्ध हैं। इन पर रोक की कोई ठोस कोशिश नहीं हो रही। दरअसल, इंटरनेट पर पोर्न कंटेंट और इससे जुड़ी समस्या की जड़े गहरी हैं,जिन्हें किसी साइट पर पाबंदी के जरिए नहीं सुलझाया जा सकता। जानकारों के मुताबिक,सभी देश इस समस्या से ग्रस्त हैं। इस बाबत एक वैश्विक समझौते की आवश्यकता है, लेकिन असली दिक्कत ये है कि पोर्न कंटेंट की परिभाषा अलग अलग देशों में अलग है।

इंटरनेट पर अश्लील कंटेंट को रोकने के लिए भारतीय सूचना तकनीक एक्ट-2000 को हाल में कुछ दुरुस्त किया गया। इसी कानून के तहत सरकारी एजेंसी द कंट्रोलर आफ सर्टिफाइंग अथारिटीज को वेबसाइटों को ब्लॉक करने का अधिकार दिया गया। लेकिन, इंटरनेट सेंसरशिप की मुखालफत करने वाले लोगों का मानना है कि सरकार धीरे धीरे मनमर्जी पर उतर सकती है।

दूसरी तरफ, सचाई यह भी है कि सभी पोर्न साइट्स को प्रतिबंधित करना फिलहाल दूर की कौड़ी है। फिर, सिर्फ कानून से ही पोर्न कंटेंट पर रोक लगी होती तो आज दुनिया भर में खरबों डॉलर की पोर्नोग्राफी इंडस्ट्री का अस्तित्व ही नहीं होता। हां,पोर्न साइट्स पर वैश्विक इंटरनेट नीति के बीच जरुरत जागरुकता की भी है। इसके अलावा,सरकार पोर्नोग्राफी के किसी खास पहलू पर ध्यान रखने की कोशिश कर सकती है। साइबर कानून के जानकार पवन दुग्गल कहते हैं-“अमेरिकी सरकार ने भी इंटरनेट पोर्नोग्राफी पर पाबंदी की तमाम कोशिशें की,लेकिन नाकाम रही। अब,वो सिर्फ चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर ध्यान केंद्रित किए हैं। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। भारत में भी ऐसा ही होना चाहिए।”

बहरहाल,सविताभाभी डॉट कॉम के बहाने ही सही इंटरनेट पर अश्लील कंटेंट से जुड़ी बहस फिर शुरु हुई है। इस बहस के जरिए अगर किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जा सके तो बड़ी कामयाबी मिल सकती है।

(दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 11 जुलाई को प्रकाशित आलेख)

1 comment:

  1. ये सब चीजें खतम होना मुश्किल है...बस बच्‍चों को इससे दूर रखा जाता चाहिए कैसे भी

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