
हिन्दुस्तान के 11 अप्रैल के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित इस खबर में जिन पत्रकार महोदय ने खबर लिखी, उन्हें शायद पता नहीं था कि मधुर भंडारकर की 'ट्रैफिक सिगनल' फिल्म को आए एक साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है। फिल्म सुपरहिट भले न हो,चर्चित तो थी ही। फिल्म को कई अवार्ड भी मिले। जहां तक मुझे याद है कि नेशनल अवार्ड भी मिला। लेकिन,इसमें सिर्फ गलती इस एक फिल्म को लेकर नहीं है। भंडारकर की फिल्म 'आन-मेन एट वर्क' को आए भी कई साल बीत चुके हैं। अक्षय कुमार,सुनील शेट्टी,शत्रुघ्न सिन्हा अभिनीत यह फिल्म भंडारकर की व्यवसायिक फिल्मों की तरफ मुड़ने की विफल कोशिश थी। लेकिन,हिन्दुस्तान अखबार में आन को अलग और मेन एट वर्क को अलग फिल्म बताया है।
मजे की बात है कि मधुर के बारे में वैसे भी मशहूर है कि वो एक बार में सिर्फ एक फिल्म ही करते हैं। लेकिन,अखबार ने बता दिया कि चार-पाच फिल्में निर्माणाधीन हैं। हां,इस गड़बड़झाले से मधुर खुश हो सकते हैं!
ऐसा कुछ 'महान' कर्म अभी तक किया नहीं है, जिसका विवरण दिया जाए। हाँ, औरेया जैसे छोटे क़स्बे में बचपन, आगरा में युवावस्था और दिल्ली में करियर की शुरुआत करने के दौरान इन्हीं तीन जगहों की धरातल से कई क़िस्सों ने जन्म लिया। वैसे, कहने को पत्रकार हूँ। अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, आजतक और सहारा समय में अपने करियर के क़रीब 12 साल गुज़ारने के बाद अब टेलीविज़न के लिए कुछ कार्यक्रम और इंटरनेट पर कुछ साइट लॉन्च करने की योजना है। पांच साल पहले पहली बार ब्लॉग पोस्ट लिखी थी, लेकिन जैसा कि होता है, हर बार ब्लॉग बने और मरे... अब लगातार लिखने का इरादा है...
बहुत ही गड़बड़झाले वाली बात है इन अख़बार वालो को क्या कहें
ReplyDeleteएकदम सही बात लिखे हैं आप। पत्रकारों को एक खुशफहमी हमेशा रहती है कि वो बहुत जानकार हैं। इसी में पूरा दुनिया का झरकाते रहते हैं। खैर, कभी न कभी तो नशे से बाहर आयेगा, मदक्की। और, जिस दिन आयेगा, उस दिन पता चलेगा कि चिड़िया खेत चुग चुकी है।
ReplyDeleteपत्रकार महोदय के कालम का नाम ही गासिप है तो वो और लिख भी क्या सकते हैं।वैसे भी आज मीडिया जिस तेज़ी से विश्वसनीयता खो रहा है उससे तो ऐसा लगता है आने वाले दिनो मे गासिप और समाचारों मे कोई फ़र्क़ ही नही रह जायेगा। बहुत सही पकड़ा है आपने मगर अफ़्सोस उन विद्वान?पत्रकार महोदय के संपादक को शायद इस बात का पता चल ही नही पायेगा।
ReplyDeleteye to binaa aakar ke patrakaar nikle
ReplyDeleteलोग कहते हैं कि पत्रकारिता में सारे गड़बड़झाले की वजह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ही है, तो फिर इन अखबारनवीसों को क्या कहें....
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