सीबीएसई बोर्ड के दसवीं-बारहवीं के नतीजे आ गए हैं। कुछ बच्चों को 100 फीसदी नंबर मिले हैं। 97-98-99 फीसदी नंबर लाने वाले तो कई हैं। ऐसा लग रहा है कि मानो नंबरों की लूट मची और बच्चों ने पैन की नोंक पर सब लूट डाले। इत्ते नंबर मिले हैं कि कई बार शक होता है कि जांचने वाले अध्यापक ने वास्तव में ठीक तरह से जांच की भी या नहीं ? एमपी बोर्ड और यूपी बोर्ड से दसवीं-बारहवीं कर चुके लोग तो नंबरों के इस खेल की जांच की मांग कर सकते हैं। यूपी-एमपी बोर्ड में दसवीं-बारहवीं में मिलाकर जितने अंक नहीं आते थे, सीबीएसई में एक बार में ही आ जाते हैं। ऐसे में नंबरों के घोटाले की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
इस देश में आज तक किसी घोटाले की जांच कायदे से निष्कर्ष पर नहीं पहुंची, लिहाजा नंबरों के घोटाले की जांच का निष्कर्ष तक पहुंचना असंभव है। लेकिन सवाल नंबरों का नहीं, उन बच्चों का है, जिनके नंबर नहीं आए। वे उदास हैं। इस कदर उदास हैं कि कुछ पटरी तक हो आए और ट्रेन को दो मिनट विलंब से आता देख अपने खुदकुशी के कार्यक्रम को स्थगित कर लौट आए। कुछ ने घर से भागने का प्रोग्राम इसलिए स्थगित कर रखा है कि बाहर गर्मी बहुत है। उन्हें सिर्फ अच्छे मौसम का इंतज़ार है।
इस देश में नंबरों का बड़ा महत्व है। बैंक एकाउंट से लेकर संसद तक अंकों के आसरे सफलता का आँका जा रहा है। लेकिन बोर्ड के इम्तिहान में कम नंबर वाले इस चक्कर में न फंसें। कम नंबर का अपना महत्व है। उसके अपने लाभ हैं और उस फायदे को समझें। इससे बड़ी किरपा आएगी।
कम नंबर का आर्थिक लाभ यह है कि आपको पार्टी नहीं देनी पड़ेगी। आपके मां-बाप को भी नहीं। आप सिर्फ पार्टी उड़ाएंगे, देंगे नहीं। यानी महंगाई के इस दौर में जबरदस्त बचत। कम नंबर का दूसरा लाभ यह है कि आप यह बता सकते हैं कि आप जिस बात को शिद्दत से महसूस करते हैं, उसी राह पर चलते हैं। और आप इस बात को शिद्दत से महसूस कीजिए कि अंकों का कोई मतलब नहीं है।
कम नंबरों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे आप पर कोई दबाव नहीं रहता। घर के सारे सदस्य समझ जाते हैं कि आप निठल्ले हैं या आपसे कुछ नहीं होगा। और जब तक दबाव नहीं होता तो इंसान मस्ती की धुन में रहता है। इसके अलावा जब दबाव न हो और फिर बंदा छक्के जड़ दे तो झटके में खिलाड़ी महान हो जाता है।
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