फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और सोशल मीडिया के दूसरे औजारों की ताकत का इल्म पूरी दुनिया को है। मिस्र में प्रदर्शनकारियों ने इसकी ताकत का अहसास एक बार फिर कराया है। ईरान में 2009 में आंदोलनकारियों ने ट्विटर और यूट्यूब का इस्तेमाल कर सत्ताधीशों की चूलें हिला दी थीं और यही कहानी मिस्र में दोहरायी गई। मिस्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ आंदोलनकारियों का गुस्सा इंटरनेट पर बहते हुए भौगोलिक सीमाएं लांघने लगा तो सरकार ने इंटरनेट पर ही प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि, 30 साल से सत्ता संभाल रहे होस्नी मुबारक के खिलाफ लोगों के दिलों में सुलग रही चिंगारी सोशल मीडिया के जरिए पहले ही एक भयंकर आग के रुप में तब्दील हो चुकी थी।
ट्यूनीशिया में तानाशाह जाइन अल आबीदीन बेन अली की सरकार के खिलाफ जनमत तैयार करने में सोशल मीडिया के औजार पहले ही बड़ी भूमिका निभा चुके थे। विकीलीक्स ने सरकार की करतूतों का खुलासा किया तो फेसबुक,ट्विटर और यूट्यूब ने लोगों को आंदोलन का हिस्सा बना डाला। उन्हें एकजुट किया। ट्यूनीशिया की आग मिस्र में कब पहुंच गई, ये होस्नी मुबारक को ठीक से पता भी नहीं चल पाया। यहां भी लोग सोशल साइट्स के जरिए आपस में एक जुड़ते चले गए। आबीदीन बेन अली ने कई साइटों पर रोक लगाई थी, लेकिन घबराए मुबारक ने तो देश में इंटरनेट पर ही पूर्ण पाबंदी लगा डाली। 2007 में म्यांमार की सरकार ने इंटरनेट पर पूरी तरह पाबंदी लगायी थी और मिस्र में इंटरनेट पर रोक इतिहास में दूसरा मौका है।
लेकिन, सवाल सिर्फ राजनीतिक विद्रोह के बीच सोशल मीडिया के इस्तेमाल का नहीं है। सवाल है निरंकुश शासन के दमनकारी हथकंडों के बीच अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का। अपनी बात न केवल कहने बल्कि दुनिया तक पहुंचाने का। खास बात है कि मिस्र में इंटरनेट पर रोक के कदम ने वर्चुअल दुनिया में घटती क्रांति को नयी दिशा दे डाली। दरअसल, गूगल और ट्विटर ने लोगों को मौखिक ट्वीट की सुविधा देकर इस क्रांति में एक नया अध्याय जोड़ दिया। गूगल ने ट्विटर से समझौता किया और मिस्र के लोगों की आवाज़ दुनिया तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। मिस्र में मोबाइल से एसएमएस करने पर भी रोक लग चुकी थी, लिहाजा इस सेवा के लिए लोगों को तीन अंतरराष्ट्रीय नंबरों पर फोन कर अपनी बात कहनी थी। उनके संदेश ऑडियो ट्वीट की शक्ल में ट्विटर व कुछ अन्य साइट पर उपलब्ध कराए गए। महज दो-तीन दिनों में ट्विटर की इस सेवा से हजारों लोग जुड़ गए और ट्वीट करने वालों में मिस्र के अलावा कई दूसरे अरब और पश्चिमी देश के लोग शामिल हो गए। इस सेवा का बड़ा फायदा अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को मिला, जिन्हें आम लोगों की आवाज़ में उनकी बात सुनने को मिली।
मिस्र में इंटरनेट सेवा अब बहाल हो गई हैं, लेकिन सवाल बरकरार है कि भविष्य में इंटरनेट पर पाबंदी के बीच क्या नए विकल्प हैं। दूसरी तरफ, मिस्र के विद्रोह में सोशल मीडिया की भूमिका ने सरकारों को भी डरा दिया है कि वो इनसे कैसे निपटें। चीन इस बाबत सबसे अधिक सतर्क है, जहां हजारों विश्लेषकों को सत्ता के पक्ष में सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर कमेंट करने के लिए तैयार किया गया है। कई मुल्कों में सरकारें अब फेसबुक-ट्विटर आदि पर नियमित नजर रखने लगी हैं। ‘द गार्जियन’ में प्रकाशित हाल में एक रिपोर्ट में कहा कहा कि मिस्र में आंदोलनकारियों के बीच ‘विद्रोह के दौरान व्यवहारिक सतर्कता’ को लेकर कुछ पर्चे बांटे गए और इसमें लिखा गया कि वो इन पर्चों को ई-मेल और फोटोकॉपी के जरिए आपस में बांटे, लेकिन फेसबुक का इस्तेमाल न करें क्योंकि सरकारी अधिकारी उस पर नजर रखे हैं। भविष्य में निरंकुश सरकारें सोशल मीडिया के भीतर तांकझांक बढ़ाएंगी, इसमें संदेह नहीं। लेकिन, बुलंद इरादे हर हाल में जाहिर होते हैं। तकनीकी युग में तो उन्हें दबाना नामुमकिन है। मिस्र में इसकी बानगी हमनें देख ली है।
It begins with self
2 weeks ago
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