Monday, January 25, 2010

न्यूयॉर्क टाइम्स ऑनलाइन की पहल का मतलब

अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स अगले साल की शुरुआत से अपने वेब संस्करण के लिए शुल्क वसूलेगा। ऑनलाइन न्यूज प्रदाताओं के लिए यह बड़ी खबर है, क्योंकि इस कदम के जरिए न्यूयॉर्क टाइम्स डॉट कॉम एक नए युग की शुरुआत करने जा रहा है। अपने वर्तमान ऑनलाइन पाठकों को बचाए रखने, सर्च इंजन में अपनी मौजूदगी को यथावत रखने और विज्ञापनदाताओं का भरोसा कायम रखने के मकसद से न्यूयॉर्क टाइम्स ने भुगतान के लिए ‘मीटर प्रणाली’ को चुना है। यानी कोई पाठक एक महीने में चंद बार निशुल्क साइट देख सकता है। इसके बाद साइट सर्फ करने के लिए उसे शुल्क देना होगा। पाठक कितनी बार निशुल्क साइट सर्फ कर सकता है और उसे कितना शुल्क देना होगा-इसका खुलासा नहीं किया गया है। न्यूयॉर्क टाइम्स को खरीदकर पढ़ने वाले पाठक निशुल्क साइट देख पाएंगे।

न्यूजकॉर्प के प्रमुख रुपर्ट मर्डोक ने हाल में गूगल पर अपने अखबारों के कंटेंट चोरी करने का आरोप लगाते हुए ऑनलाइन कंटेंट के लिए शुल्क वसूलने की बात कहकर एक जोरदार बहस छेड़ दी थी। मर्डोक का तर्क था कि सर्च इंजन ऑनलाइन कंटेंट की विशिष्टता खत्म कर देते हैं,लिहाजा वहां से लिंक हटाए जाएं और पाठकों को बेहतरीन कंटेंट देने के लिए शुल्क लिया जाए। लेकिन,सवाल यही है कि क्या पाठक ऑनलाइन कंटेंट खासकर सामान्य न्यूज कंटेंट के लिए शुल्क देने को तैयार हैं? एक तर्क है कि फाइनेंशियल टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल और कुछ दूसरे अखबार अपने ऑनलाइन संस्करण के लिए फीस वसूल सकते हैं तो न्यूयॉर्क टाइम्स क्यों नहीं? दूसरा तर्क है कि शुल्क वसूलने वाले सभी अखबार-पत्रिकाएं बिजनेस अथवा किसी खास विषय पर केंद्रित हैं,जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स के कई विकल्प बाजार में मौजूद हैं।

दोनों तर्क अपनी जगह सही हैं, लेकिन सचाई यह है कि न्यूयॉर्क टाइम्स ऑनलाइन इस पहल के जरिए भविष्य की रणनीति तैयार कर रहा है। साइट के ट्रैफिक पर नजर रखने वाली कंपनी कॉमस्कोर के मुताबिक न्यूयॉर्क टाइम्स डॉट कॉम के सितंबर 2009 में 15.4 मिलियन पाठक थे, जो दिसंबर में घटकर 12.4 मिलियन रह गए। ट्रैफिक घटने की और आशंका के बावजूद न्यूयॉर्क टाइम्स इस दिशा में आगे बढ़ा है,तो सोच-समझकर। हालांकि, 2005-07 में भी साइट टाइम्ससिलेक्ट नाम से शुल्क वसूलने का एक विफल प्रयोग कर चुकी है। लेकिन, इस दौर में भी साइट ने 2,10,000 ग्राहक बटोरने में कामयाबी पाई थी,जिनसे 50 डॉलर सालाना शुल्क लिया गया था। इसके जरिए न्यूयॉर्क टाइम्स ने 10.5 मिलियन डॉलर की कमाई की थी।

दरअसल, शुल्क वसूलने का ‘मीटर सिस्टम’ न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए कामयाब साबित हो सकता है। रिसर्च बताती हैं कि अमेरिका में एक औसत पाठक 3.7 बार न्यूयॉर्क टाइम्स की साइट पर आता है, यानी ऐसे पाठकों को नये फॉर्मूले में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जबकि,गंभीर पाठक 10-15 डॉलर तक आसानी से खर्च कर सकता है। यानी नया फॉर्मूला विज्ञापनों की घटती आय को कुछ हद तक पाट सकता है।

लेकिन, बात सिर्फ न्यूयॉर्क टाइम्स के ऑनलाइन संस्करण की नहीं, पूरे ऑनलाइन न्यूज कंटेंट की है। एक्सक्लूसिव कंटेंट के बिना शुल्क वसूलना मुमकिन नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स को भरोसा है कि प्रामाणिक खबरें और विश्लेषात्मक रिपोर्ट उसे दौड़ में आगे रखेंगी। वैसे, कई दूसरे अंतरराष्ट्रीय अखबार अब इस दिशा में सोचने पर मजबूर होंगे। लेकिन, भारत में अभी यह दूर की कौड़ी है। ऑनलाइन संस्करणों के रुप में अखबारी संस्करणों की नकल, एक्सक्लूसिव कंटेंट की जबरदस्त कमी, इंटरनेट की सीमित उपलब्धता और खबरों के लिए ज्यादा जेब ढीली न करने की भारतीय मानसिकता जैसे कई इसके कारण हैं। हालांकि, ‘द हिन्दू’ ने ई-पेपर के लिए शुल्क वसूलने की शुरुआत की है, लेकिन असल सवाल तो अखबारों के वेब एडिशन का है।

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